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________________ श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी । आदरसे ४ और उसका अनुमोदन कर याने उस दानको अच्छा समझ कर देना ५ इन दानके पाँच भूषण युक्त सुपात्रको दान दिया, बाद नेमिनाथ जिसके स्वामी हैं ऐसे गिरनार तीर्थ पर संघ पहुँचा ॥२४१॥ सिद्धाचलके समान वहाँपर भी सहर्ष यात्रा कर और धर्मकर्मादिके कुल शुभ कार्य करनेके बाद आनन्द पूर्वक संघ थिरपुर-थराद आया ॥ २४२ ॥ यहाँपर भी संघपतिने साधर्मिकवात्सल्य, जिनेंद्रभगवानकी पूजा, प्रभावना और सुन्दर गीत नृत्यादिकोंसे सुशोभित अष्टाहिक महोत्सव किया ॥ २४३ ।। गुरुवाक्येन संघेऽस्मिन् , द्विलक्षव्ययमातनोत् । कुर्वन्नेवं प्रतिस्थाने, गुरुश्चेयाय सद्यशः ॥ २४४ ॥ २२--प्रतिष्ठाञ्जनशलाकयोर्विजयो लुम्पकपराजयश्च मेघातनुज-वन्नाजी-हर्षचन्द्रवरेभ्यकैः । शिवगंजपुरे ख्याते, कारितं जिनमन्दिरम् ॥२४५॥ तपसः शुक्लपंचम्यां, सिद्धिवेदनवेन्दुके । प्रतिष्ठाजितनाथादेः, कारिता साञ्जनाऽमुना।।२४६।। धर्मद्वेषिजनैर्विना, विहिता बहवोऽत्र वै। कृतं राज्येऽपि पैशून्यं, सन्मुहूतॊ नृपास्ति नो॥२४७॥ परं भूतं बलं तेषां, निष्फलं शरदभ्रवत् । प्रत्युताऽऽपुस्तिरस्कारं, सज्जनैस्ते पदे पदे ॥ २४८ ॥ १९४८
SR No.022634
Book TitleRajendra Gun Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabvijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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