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________________ (१८८) सेवा करतां संतनी मिले मुक्तिमें धाम ॥ दुर्जन पासे असतां पडे कुटाईं चाम ॥ ४९ ॥ सर्प नारी समुद्रनो करीए नही विश्वास ॥ जालविये तो जीवियें नही तो थाय विनाश ॥५०॥ सज्जन एसा कीजीयें जाम लखन बत्तीस ॥ भीड पडे भाजे नहीं सोपे आपनो सीस ॥ ५१ ॥ हदमा रहिये हरघडी मन चायुं नव थाय ॥ हस्ति पण अंकुशवस अटक्यो नवि अटकाय ॥१॥ होन पदारथ हीतहे बिसर जात शब सुद्धि ॥ जेसी लखी नसीब में तेसी उकलत बुद्धि ॥२॥ हलदी जरदी ना तजे खट रस तजे न आम ॥ गुणीजन गुणने ना तजे अवगुण तजे न गुलाम ॥३॥ हिंसा दुःखनी वेलडी हिंसा दुःखनी खाण ॥ अनंता जीव नरके गया हिंसा तणे परिमाण ॥४॥ हठ अति नव कीजिये हठशे काज न होय ॥ ज्युं ज्युं भीनी कामली त्युं त्युं भारी होय ॥ ५॥ a समाप्त. Farmffitifimins
SR No.022632
Book TitleNiti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandra Maharaj
PublisherRavji Khetsi
Publication Year1917
Total Pages500
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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