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( २७०) भावार्थ--परोपकार अने मोक्ष-ए बनेने तोळतां परोपकारने महान् मानीने विष्णु भगवाने दश अवतारो धारण कर्या. ७३
परोपकाराय फलंति वृक्षाः परोपकाराय वहंति नद्यः । परोपकाराय दुहंति गावः परोपकारार्थमिदं शरीरम् ॥ ७४॥
भावार्थ-जुओ, परोपकारनी खातर वृक्षो जगतमां फळे छे, परोपकारनी खातर नदीओ वह छे, परोपकारनी खातर गायो दूजे छे. माटे आ शरीर परोपकार माटेज पेदा थयेल छे. ७४ ___ पद्माकरं दिनकरो विकचीकरोति चंदो विकासयति कैरवचक्रवालम् । नाभ्यार्थितो जलधरोऽपि जलं ददाति संतः स्वयं परहितेषु कृताभियोगाः॥७५॥
भावार्थ—सूर्य, पद्मोने विकसित बनावे छे, चंद्रमा कैरवो (कमळो) ने विकस्वर करे छे, मेघ प्रार्थना विना जगतने जळ आपे छे, माटे संतजनो स्वयमेव परोपकार करवामां तत्पर होय छे. ७५