SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 201
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १९० ) भावार्थ - एकने एक दृश्य जोइने फरी वार पण जोवामां आवे छे अने सांभळेल फरीवार सांभळवामां पण आवे छे, परंतु खरेखर ! साधुजननुं सत्य वचन एकजरूपे रहे छे. ४३ दानाय लक्ष्मीः सुकृताय विद्या चिंता पर - विनिश्चयाय | परोपकाराय वचांसि यस्य वैद्यस्त्रिलोकीतिलकः स एकः ॥ ४४ ॥ भावार्थ - जे पोतानी लक्ष्मीने दानमां वापरे छे, विद्याने सुकृतमां वापरे छे, परम ब्रह्मनो निश्चय करवामां जे पोताना मनने रोके छे अने पोतानां वचनो जे परोपकारने माटे वापरे छे-त्रणे लोकमां तिलक समान एवो ते एकज पुरुष सर्वने वंदनीय छे. ४४ दृश्यते भुवि भूरिनिंबतरवः कुत्रापि ते चंदनाः पाषाणैः परिपूरिता वसुमती वज्रोमणिर्दुर्लभः । श्रूयंते करटारवाश्च सततं चैत्रे कुहूकूजितं तन्मन्ये खलसंकुलं जगदिदं द्वित्राः क्षितौ सज्जनः। भावार्थ - जगतमां नींबडाना वृक्षो घणा जोवामां आवे छे, परंतु चंदनवृक्षो क्यांकज हशे समस्त पृथ्वी
SR No.022632
Book TitleNiti Tattvadarsh Yane Vividh Shloak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandra Maharaj
PublisherRavji Khetsi
Publication Year1917
Total Pages500
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy