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भावार्थ - जुओ, चंद्र क्षय पामे छे, स्वभावे वक शरीरवाळो छे, जडात्मा छे, दोषाकर एटले रात्रिने करनार छे अने मित्र (सूर्य) ना विपत्तिकाळे ते स्फुरायमान थाय छे, अहो ! तथापि शंकर तेने मस्तकपर धारण करे छे. माटे महापुरुषो पोताना आश्रि तोमा गुण के दोषनी शंकाज करता नथी. १४ चलं वित्तं चलं चित्तं चले जीवितयौवने । चलाचलमिदं सर्वं कीर्तिर्यस्य स जीवति ||१५||
भावार्थ - जगतमां धन चलायमान छे, मन चलायमान छे, जीवित अने यौवन पण चलायमानज छे, एटलुंज नहि पण आ बधुं चलायमानज छे. तेथी जेनी कीर्ति जाग्रत छे-तेज जीवंत छे. १५
चंदनं शीतलं लोके चंदनादपि चंद्रमाः । चंद्रचंदनयोर्मध्ये शीतला साधुसंगतिः ॥ १६ ॥
भावार्थ-जगतमां चंदन शीतल कहेवाय छे अने चंदन करतां पण चंद्रमा अधिक शीतल छे. वळी चंदन तथा चंद्रमा करतां पण साधुजनोनी संगत अधिक शीतल छे. १६