SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कुमारविहान रशतकम्।। ॥४३॥ ने. सूर्य प्रजुने विनंति करवाने चैत्यना उच्च प्रदेशमा नजीक आवे छे. ते ए. वी विनंती करे छे के, "हे स्वामी, तमे आ त्रण नुवननुं संतापमांथी रक्षण करोगे, त्यारे माझं पण तमारे रक्षण करवू जोइए, कारण के, हुं हमेशा मारा पोताना तीव्र तेजथी संताप पामु बु.” आवी प्रार्थना करवाने सूर्य ते चैत्यनी नजीक लम्या करे छे. प्रभुनी पासे सूर्यकांतमणिना धूपिया छे. ते धूपिश्रा उपर सूर्यना किरणो पमवाथी तेमांथी विशेषकांति निकळे छे. वळी ते पोताना वसु-किरणोना समूहथी चैत्यना कोश जागने पूरे छे. अहिं एवो पण अर्थ थाय के, जेम कोइ माणस पोतानुं कार्य करवाने बीजा माणसने अव्य आपे छे, तेम सूर्य संताप दूर करवानुं पोता, कार्य सिद्ध करवाने कोश ए. टले खजानो तेमां वसु एटले अव्य पूरे छे. वसुनो अर्थ किरण अने अव्य बने थाय छे. ४०
SR No.022628
Book TitleKumarvihar Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1910
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy