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________________ कुमारविहारशतकम् ॥ हमदे, चाहमदे अने सोन नामना चार नाइनो, नवाणुं लाख व्यना अधिपति डामा प्रमुख, अढारसो कोटीश्वर वेशरीओ अने बोतेर सामंतोना परिवारथी परिकृत शइ सूरीश्वरनी पाटणमा आवेवा ते त्रिनुवनपाल प्रासादमां पधरामणी था हती. आ वखते कवीश्वर रामचंगणी साये हता. ते सूरिवर ज्यारे ते प्रासादमां वीराजेला श्री पार्श्वनाथ प्रतुने वंदना करता हता, ते अवसरे महाराजा कुमारपासनी पार्यनायो तेमणे अष्ट नमस्कारात्मक आठ काव्यनी योजना करी हत.. अने एकसो आउ श्लोकोयी ते प्रासादनुं वर्णन कर्यु हतुं." आ प्रमाणे अवचूरिकार श्री विबुधोत्तम सुधाजूषणगणी अवचूरिना आरनमा ग्रंथकारनो वृत्तांत आपे ने अने आ शतक काव्य उपर थयेनी पोताना हृदयनी प्रसन्नता प्रगट करे . महानुनाव श्री विबुधोत्तम सुधाभूषणगणी श्री सोमसुंदरसूरिना परिवारमा उत्पन्न थयेना छे अने तेमणे आ काव्यपर अवचूरि वनावी अन्यासीओनी नपर महान् उपकार करेलो डे. एकंदर महानुनाव रामचंगणीए आ शतकमां जे कवितानुं सौंदर्य दर्शाव्यु , ते आखा | जैन साहित्य- उच्च स्वरूप . पद अने अर्यनुं लालित्य एटळ बधू उत्तम डे के, तेने समजनारा सहृदयने पूर्ण रस उपजावे ने अने रहस्यमा उतरतां चित्तने लीन करे जे.
SR No.022628
Book TitleKumarvihar Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1910
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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