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पोतानी प्रकृत्रिम वाणीमां उतारता होय अथवा तो तेनुं पवित्र हृदय पोतेज पोतानुं जावना चित्र खतुं होय एवो जास थाय छे.
महानुभाव श्री रामचंद्रगणीनी अगाध काव्य प्रतिना होवाथी ते समयना अनेक विधानाए कवितेमना काव्यनी जारे प्रशंसा करेली छे. सूक्ष्म अवलोकन करतां एम पण स्फुरणा था के, संस्कृत लेखनां केटांक मान्य शतकोना कर्त्ताओ पण या कुमारविहार शतकनी शैली थी मोहित थइ एवां शतको रचवा प्रयासी यया हो. केटलांक तो ए मोहने लइने आ शतकनी अव चूरि, वृत्ति वगेरे करवाने तत्पर पण वन्या बे.
वळ आथी सर्वने सविशेष सानंदाश्रर्य थशे के या महानुभाव श्री रामचंद्रगणी कवीश्वरे पोताना निर्माण कौशल्यथी शणगारेला अने साक्षरो अने प्राकृतो सर्वना मनने रंजन करनारा बीज एकस ग्रंथ रचेल्लां छे. ते मां निर्भय जीमव्यायोग, रघुविलास नाटक, डव्यालंकार, राघवाभ्युदयमहाकाव्य, यादवान्युदयमहाकाव्य अने नलविलास महाकाव्य आदि घणां ग्रंथो प्रख्यात जे.
महानुभाव रामचंद्रगणीनुं जीवनवृत्त जाणवा जेतुं हृशे, पण तेमनी सांसारिक