SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विघ्नो थता नथी, जडता रहेती नथी, त्रण लोकनो प्रकाश थाय ने, कल्याणनुं पोषण थाय ने अने पाप रूप सरितामां पुण्य रूप अमृतनी वृष्टि थाय . ६ यज्जन्मस्नात्रपर्वण्यनवरतचलच्चामरालीमरुद्भिविक्षिप्तैरंतरीक्षे विचकिलधवलैर्दुग्धसिंधोः पयोभिः ।। आकीर्ण शीतरश्मेः क्षणमधितवपुर्निष्फलंकामवस्थां त्रैलोक्यारब्धसेवः स हरतु दुरितं पार्श्वदेवश्चिरं वः ॥ ७॥ अवचर्णिः त्रैलोक्यारब्धसेवः स पार्श्वदेवश्चिरं वो युष्माकं दुरितं हरतु । यज्जन्मस्नात्रपर्वणि अनवरतचनच्चामरालीमरुदिः अंतरीके विक्षिप्तः नत्सारितैः विचकिला मलिका तइयवः पुग्धसिंधोः पयोनिराकीर्ण व्याप्तं शीतरश्मेर्वपुः कणं निष्कलंको अवस्था अधित धृतवत् ॥ ७॥ लावार्थ-जेमना जन्म स्नात्रना पर्वमा वारंवार चलायमान थयेला
SR No.022628
Book TitleKumarvihar Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1910
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy