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________________ कुमार विहा रशतकम् ।। ॥ ए४ ॥ त्रिदृशपुरपुरंधीरासकान् दृष्टुकामाः । सततमधिवसंत्यो यामिकानां कुटीरे नगरहरिणनेत्राः प्रेयसः खेदयंति ॥ ९० ॥ अवचूर्णि:: - यत्र प्रासादे निशीथे मध्यरात्रे प्रतिरजनि नेत्रैकलेह्यान् त्रिशपतिपुरंध्री रासकान् दृष्टुकामाः यामिकानां कुटीरे तृणौकसि सततं अधिवसंत्यः नगर हरिण नेत्राः प्रेयसो वान् खेदयंति उच्चाटयंति ॥ ० ॥ भावार्थ — जे कुमारविहार चैत्यनी अंदर प्रत्येक अर्धरात्रि नेत्रोथी नीरखवा नायक एवा इंडोनी स्त्रीओना रासमाने जोवानी इच्छाथी पेहेरेगीरोनी पर्णकुटीमां सतत नीवास करी रहेती नगरनी स्त्रीओ पोताना प्रिय पतिने चाट करावे छे. ए० विशेषार्थ - ते कुमार विहार चैत्यनी अंदर दरके अर्ध रात्रे इंडोनी स्त्री
SR No.022628
Book TitleKumarvihar Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1910
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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