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________________ माणवकः । सहयः कसोलास्तेषां तांझवामि विलासाः तेषामागंबराणि यस्यां तस्यां । कीरार्णवं चिंतयति, ‘स्मृत्यर्थदयेशः षष्ठी' । यामिनीकामिनीशः चंडः प्रासादस्य पूर्वाभिमुरवत्वात् श्रीवामेयमतिमायाश्चंद्रकांतमयत्वात् एवमुक्तिः ॥३॥ नावार्थ-इंजोना मुगटनी साथे मळेवा मुक्ताफसोना किरणोमां स्नान करेला श्री पार्श्वनाथप्रजुना चरणकमळना नखमणिओ आ त्रण ज. गतना समग्रजनोनुं मंगळ करो. जेमनी नज्वल कांतिनी रहेरोना तोमवना आनंबरवाळी मध्यवेदी उपर प्रतिबिंबित थतो निशारूपी कामिनीनो पति चं. ज वारंवार दूधनासमुपर्नु स्मरण करे . ३ विशेषार्थ-आ श्लोकमां ग्रंथकार श्री पार्श्वनाथप्रजुना चरणकमळना नखने आशीर्मगलरूपे स्तवी वर्णवे . जे श्री पार्श्वनाथ प्रजुना चरणकमळ. ना नखमणिो इंजोना मुगटपर जमेवा मुक्ताफळना किरणोमां स्नान करेवा -अर्थात् इंजो आवी पोताना मस्तको नमावी तेमना चरणमां नमे
SR No.022628
Book TitleKumarvihar Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1910
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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