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________________ प्रजुनी पासे सतत शेषनाग रहेतो, तेथी आ पृथ्वी नीचे तेने सतत धारण करी रहेलो कूर्मराज ( काचबो) एकज जो पोताना मनमा फुःखी रहेतो होय तो वखते संजवे . ७७ विशेषार्थ-आ श्लोकथी कविए ते चैत्य अने तेनी अंदर बिराजमान थयेला श्री पार्श्वनाथ प्रतुनो अद्लुत महिमा दर्शाव्यो ने. ते चैत्य एवा अलुतनो महासागर हतुं, के तेने जोनार दरेक माणस हृदयमा अति आनंद पाम्या विना रहेतो नहीं. तेमां कवि एक कल्पना करे ने के, दरेक मा. णस ते चैत्यने जो आनंद पामतो पण वखते लौकिकमां कहेवा प्रमाणे आ पृथ्वी नीचे रहेनो कूर्म एक नाखुश थतो हशे कारण के, पृथ्वीने धारण करवामां साथे रहेनार शेषनागने श्रीपार्श्वनाथ प्रनुए पोतानी पासे राख्यो बे, ते वात पृथ्वीने एकला धारण करी रहेला काचबायी सहन थ शकती
SR No.022628
Book TitleKumarvihar Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1910
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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