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________________ कुमार विहारशतकम् ॥ संबः पुनर्यकेंजो महावनः पुनरयं नृणां सत्यावपातः एवं अनेन प्रकारेण यत्र प्रासादे देवार्चकः स्त्रीणाय स्त्रीसमूहाय प्रविणाशया विकृणुते व्याख्यानयति । विरामो निवृत्तिः । राजा नूपः स इव । चित्रालयं । चित्रगृहं । मौक्तिकपालंबः मुक्ताहारः श्रीपार्श्वस्येति गम्यं । श्रीहेमाचार्य गुरवः तत्र सन्याः कुमारपालादयः श्रीमंत इति व्याख्यासना । सत्यावपातः सत्यनिश्चयः ॥ ७१–७२ ॥ युग्मम् ।। लावार्थ-'आ देव श्री पार्श्वनाथ प्रनु सोनाना ,''आ स्तंनो चंकांतमणिना , ' 'आ पुतती चंचन कंकणवासी , ' 'आ दर्शनीय वस्तुनी अवधि रूप नाटयगृह , ' ' आ व्याख्यानशाला , के जेने रचीने सूत्रधार (सुथार) विराम पामी गयो छे. 'वली त्रण लोकमां अदजुत एवं आ चित्रालय राजानी जेम जुवो, ' चीनाइ वस्त्रोना रचेता आ चंदरवा विसोको, आ मोतीओना चंदरवानी कुन के जेने रचवामां ब्रह्मा पण वक्र थइ जायचे, अने आ महाबन नामे यतेंज (पार्श्वयक) के, जेने देखी सोकोने ते सत्य ,
SR No.022628
Book TitleKumarvihar Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1910
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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