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________________ करे ने तेत्रो कहे जे के, श्री पार्श्वनाथ प्रतु तमारा तेजनुं पोषण करो. जे तेज पापनो विजय करनार अने मोक्षना आनंदनुं मूळ . श्री पार्श्वनाथप्रनु सर्पनी सात फणाआना समूहनी अंदर रहेला सात रत्नोनी अंदर प्रतिबिंबित थाय ने. ते वखते तेमना सात प्रतिबिंबो पके डे, तेथी पोताना आठ स्वरूप थाय . ते उपर कवि नत्प्रेक्षा करे ने के, आ जगत्नी अंदर रहेला लोकोना आठ कर्मनो बेद करवाने पार्श्वनाथ प्रजुए आठ रूप करेला , कारण के आउ कर्मने देदवाने माटे आउ रूप थवां जोइए. १ ते वस्तापं हरतां नखमणिमुकुरज्योतिरंभ छटाभिदिक्चक्रं प्रीणयंतः करिमकरभृतः पार्श्वनाथस्य पादाः । ..., पद्मनित्यप्रबोधैरधरितसरसां मैत्र्यमासाद्य येषां
SR No.022628
Book TitleKumarvihar Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1910
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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