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________________ कुमारविहारशतकम् ॥ ॥५६॥ मांथी नीकळती कांतिरूप मणिोनी नदीने जोइ जेना घोमाओ जलकनकनी बुद्धियी नना रहेता जाय . तेवा घोमाअोए वहन करेलो सूर्यनो रथ जे चैत्यना मस्तक नपर लांबा वखत सुधी स्थाननी लीना रचे ने अर्थात् घणो काल उन्नो रहे . ५३ विशेषार्थ ते चैत्यनी उपर सूर्यनो रथ ज्यारे आवे , त्यारे ते स्थले ते घणीवार उन्नो रहे , कारणके, तेना शिखर उपर सुवर्णना कमशो घणा , अने तेमां चंकांतमणिोमांथी कांतिना प्रवाह ऊर्या करे ने, ए. टले ते देखाव सुवर्णना कमज्ञवाली आकाश गंगाना जेवो थाय छे. ते जो सूर्यना रथना घोडाओ जलनी बुद्धिथी उत्ना रही जाय छे एटले.ते रथ ते स्थसे सांबोकात टकी रहे . आयी पण चैत्यनी अति उन्नति दर्शावी . ५३
SR No.022628
Book TitleKumarvihar Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1910
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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