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________________ कुमार विहारशतकम्।। ॥४॥ तरफयी झान खातानी उपजेली रकम, तेमन अमदावादनी पांजरापोळना उपाश्रयना वहीवट करनार शेव जेसंगनाइ हठीसिंग तरफथी ज्ञान खाते उपजेल रकम, महाराज साहेब श्री हंसविजयजी महाराजना सद उपदेशथी ते बंने तरफयी आ पुस्तकनी प्रसिद्धिनी सहायमा अर्पण करवामां आवेली बे, तेने माटे ते बनेनो आजार मानवामां आवे छे. ते रीतिर्नु अनुकरण करी प्राचीन जैन साहित्यना आवा आवा उत्तम ग्रंथो प्रगट करावा माटे वीजा पण स्वधर्म प्रेमी जैन गृहस्थो जो विशेष उमंगी थशे तो आ संस्था तेवू कार्य करवाने सदा वधारे नत्साही रहेशे. आ ग्रंथनी एकेक प्रत मुनिराजने, साध्वीओने, तथा पुस्तकमारमा मुकवा माटे सना तरफथी नेट तरीके अर्पण करवानी . आवा संस्कृत अने मागधी भाषाना ग्रंथो मूळ, टीका (अवचूरि) नावार्थ, विशेषार्थ, साथे अनेक शुद्ध थप्ने बहार पमे एवी अमारी अंतःकरणनी इच्छा होवाथी, तेना प्रथम प्रयत्नरुपे आ ग्रंथ प्रसिध करवामां आव्यो . आग्रंथ खास करीने चकचकीत उंचा आर्टिपेपर उपर मोटो खर्चकरी उपाववामां आवेश ने. परंत अावा उत्तम कार्योमां खर्चनी गणना करवामां प्रावती नथी. आ ग्रंथमां संपूर्ण सावधानी राखी मूळ अवचूरि, नावार्य, अने विशेषार्थ बखवामां आव्या
SR No.022628
Book TitleKumarvihar Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1910
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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