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________________ मध्यम 'स्याद्वाद रहस्य' का आदर्श भो उपाध्यायजी के स्वहस्ताक्षर वाला विमलगच्छीय महेन्द्रविमल के ज्ञानभंडार से उपलब्ध हो रहा है । यह ज्ञानभंडार पहले देवशा के पाडा में ही था किन्तु अभी ला. द. विद्यामंदिर ( अहमदाबाद) में रखा गया है । इस आदर्श में ४९ पत्र हैं । इसमें पंक्तियों का प्रमाण सर्वत्र समान नहीं है, किसी में १३ से कम नहीं है और २० से अधिक प्रायः नहीं है । पत्र ४९ के द्वितीय पृष्ठ में चतुर्थ पंक्ति अपूर्ण रह गई है - उपाध्यायजी के स्वहस्तलिखित आदर्श होने से यह ज्ञात होता है कि यह मध्यम स्या० र० अपूर्ण ही रह गया है। संभव है कि इतना लिखने के बाद यह आदर्श कहीं गुम हो गया हो जिससे ग्रन्थ भी अपूर्ण ही रह गया हो और इसी लिये उन्हों ने तृतीय बृहत्परिमाण वाले 'स्यार.' रचना का प्रारम्भ किया हो । इसकी भी अन्य नकल अप्राप्य है । तृतीय बृहत्परिमाण स्या० २० का मूल आदर्श 'संवेगी जैन उपाश्रय ( अहमदाबाद ) ' के ज्ञानभंडार में उपलब्ध हो रहा है । यह आदर्श उपाध्यायजी के स्वहस्तलिखित न होने पर भी पृष्ट ११।२ में स्वहस्ताक्षरों से प्रक्षेप होने से उनके ही काल में लिखी गई होगी यह सिद्ध है । प्रति का लेखन शुद्ध और सुवाच्य है इसमें २४ पत्र हैं । प्रत्येक में प्रायः २५ पंक्ति हैं । केवल पत्र २४ का अग्रपृष्ठ पाँचवी पंक्ति से अपूर्ण रह गया है यह अपना दुर्भाग्य है । अन्य कोई नकल इस प्रति की प्राप्त नहीं है । प्रकाश का आचार्यदेव 'स्याद्वादरहस्य' एक विवेचनात्मक ग्रन्थ है जिसमें वीतरागस्तोत्र के अष्टम मूल रूप से ग्रहण किया गया है इस लिये वीतरागस्तोत्र और उसके प्रणेता पु. श्रीमद् हेमचन्द्रसूरि का संक्षेप में यहाँ परिचय करना उचित है । २ - पू. आ. श्रीमद् हेमचन्द्रसूरि और वीतरागस्तोत्र जिनशासन में अनेक विद्वान् और प्रभावक आचार्य हो गए जिसमें पू. आचार्य श्री हेमचन्द्रसूरि का अति- उन्नत स्थान है । वि. सं. ११४५ में जन्म और मात्र ५ वर्ष की उम्र में उनकी जैन दीक्षा हुई । आचार्य श्री देवचन्द्रसूरि उनके गुरु थे जिन्होंने भावि के रहस्य को जान कर छोटी उम्र में इस बालक को दीक्षित बना कर सुशिक्षित भी बनाया । धैर्य - गाम्भीर्यादि गुणसम्पन्नता के कारण वि. सं. १९६६ में जिनशासन के जिम्मेदारी पूर्ण श्री आचार्यपद से विभूषित किये गये । तब से वे आचार्य श्री हेमचन्द्रसूरि के नाम से प्रसिद्ध हुए । इन आचार्य गुर्जर नरेश सिद्धराज जयसिंह को प्रतिबोध करके जिनशासन की शोभा में अभिवृद्धि करवाई । व्याकरण - काव्य- छंद - अलंकार - न्याय - चरित्र आदि साहित्य का कोइ विषय उनकी लेखिनी से अछूत न रहा । साडेतीन करोड़ श्लोक रचना करने वाले श्री हेमचन्द्रसूरि ने सिद्धराज के बाद गुर्जरदेश के अधिपति कुमारपाल को भी जैन धर्म का उपदेश देकर परम श्रमणोपासक बनाया । कुमारपाल भूपाल की प्रार्थना से उन्होंने अपने वीतरागदेव की मधुर स्तुति रूप में
SR No.022623
Book TitleSyadvad Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Mahopadhyay
PublisherBharatiya Prachyatattv Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages182
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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