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________________ सभी विषयों के जिज्ञासु अनुक्रमणिका से अधिक परिचय प्राप्त कर सकेंगे और नवीन न्याय की शैली से इन सभी विषयों का प्रतिपादन पूज्य श्रीमान् उपाध्यायजी ने किस तरह किया हैं इस जिज्ञासा को तृप्त करने के लिये तो पाठको को इस ग्रन्थ का ही अभ्यास करका आवश्यक रहेगा। बहत्स्याद्वादरहस्य यदि सम्पूर्ण उपलब्ध होता तो जैनन्याय की शोभा अत्यन्त बह जाती किन्तु दुर्भाग्य से जिस तरह उपाध्यायजी के अन्य ग्रन्थ अनुपलब्ध अपूर्णांपलब्ध हो रहे हैं उस तरह यह ग्रन्थ भी सम्पूर्ण उपलब्ध न हुआ किन्तु मध्यमस्याद्वादरहस्य बहुधा पूणे मिला है यह भी कम आनन्द की बात नहीं हैं। जैसे जैसे इस ग्रन्थ का अभ्यास विद्वद्वर्ग में होता जायगा-हमारी यह श्रद्धा है कि जैन दर्शन के प्रति पाठक की श्रद्धा में ज्वार (भरती) आती ही रहेगी। विद्वान् जैन मुनिवर्ग के लिये स्वाध्याय का एक उत्तम आलम्बन सदा के लिये बना रहेगा । यद्यपि इस ग्रन्थ के अभ्यास के लिये विवेचन की आवश्यकता जरूर अभ्यासियों को महसूस होगी किन्तु माशा है कि एक बार उसके मूलरूप में प्रकाशन हो रहा है तो उससे प्रेरणा पाकर कोई विद्वान मुविरून सविवेचन प्रकाशन के लिये भी उद्यत होंगे । उपकारस्मरणःइस ग्रन्थ के सम्पादन में इन महापुरुषों का अचिन्त्य उपकार अवश्य स्मरणीय है-, (१)-सिद्धान्तमहोदधि --कर्मसाहित्यनिपुणमति---वात्सल्यक्षीरोदधि-परमपूज्य-याचार्य देवेश श्रीमद् विजय प्रेमसूरीश्वरजी महाराजा जिनको अनहदकृपा हमें संयम और सम्पग्रहान आदि सद्योगों की उपासना-आराधना में सतत उत्साहित कर रही है । (२)-न्यायविशारद वधमानतपोनिधि उग्रविहारी परमगुरु आचार्यदेवश्रीबिजयभुवन भानुसूरीश्वरजी महाराज, जिन्होंने अज्ञान अटवो में गुमराह हमारी आत्मा के ज्ञान नेत्र को विमलाञ्जन लगाकर सन्मार्गदर्शन कराया तथा अमूल्य संयमरत्न का दान दिया । (३)-प. पू. शान्तमूर्ति मुनिभगवन्त प्रगुरुदेव श्री धर्मघोषविजय महाराज और सारगुरुदेव प्रशान्तमुद्र गीतार्थ मुनिभगवन्त श्री जयघोषविजय महाराज, जिनको पुनित निभाने. हमारे संयमदेह को पुष्टि और जिनके अविरत सान्निध्य में इस ग्रन्थ का सम्पादन हुमा । ___ इन सद्गुरुओं की महती कृपा से इस ग्रन्थ के सम्पादन के द्वारा जिस पुण्य का अर्बत. हुआ उससे विश्व के सकल जोव स्याद्वादरुचि तथा कदाग्रहविषमुक्त बने यह एक शुभेच्छा। -जयसुन्दरक्रिय अहमदाबाद
SR No.022623
Book TitleSyadvad Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Mahopadhyay
PublisherBharatiya Prachyatattv Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages182
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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