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________________ ६० वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा ___ वसुदेव, यह सुनकर कुतूहल से भर उठे। वह श्रावस्ती के उक्त मन्दिर के प्रांगण में पहुँच । मन्दिर के पुजारी ब्राह्मण ने उनसे कहा कि यदि वह मन्दिर के भीतर जाकर उसमें प्रतिष्ठित सिद्ध-प्रतिमा का दर्शन करना चाहते हैं, तो क्षणभर प्रतीक्षा करें। अपनी पुत्री के वर का इच्छुक सेठ यहाँ आयगा और वह मन्दिर के द्वार पर लगे बत्तीस नोकोंवाले ताले को खोलेगा। यह कहकर ब्राह्मण चला गया। वसुदेव तालोद्घाटिनी विद्या के बल से ताला खोलकर मन्दिर के अन्दर चले गये । मन्दिर का द्वार पूर्ववत् बन्द हो गया। मन्दिर का अन्तर्भाग सुगन्धित धूप से सुवासित और मणिदीप से प्रकाशित था। वसुदेव ने सिद्ध-प्रतिमा को प्रणाम किया। तभी, सेठ के परिवार की आवाज सुनाई पड़ी। वसुदेव, सेठ के पितामह कामदेव की प्रतिमा के पीछे खम्भे की ओट में जा खड़े हुए। सेठ ने दरवाजे का किवाड़ खोला। उसने मणि-कुट्टिम पर प्रतिष्ठित अपने पितामह कामदेव की प्रतिमा की उजले फूलों से अर्चना की, धूप निवेदित किया। फिर, प्रतिमा के पैरों पर गिरकर कहने लगा : “पितामह ! बन्धुजनों की प्रिय, बन्धुश्री (सेठ की गृहिणी) की पुत्री बन्धुमती के लिए वर दीजिए या वर की प्राप्ति का उपाय बताइए।" यह कहकर सेठ उठ खड़ा हुआ। तभी, खम्भे की ओट से वसुदेव ने अपना कमल-कोमल दाहिना हाथ बाहर निकालकर फैला दिया। सेठ वसुदेव का हाथ पकड़कर उन्हें अपनी ओर ले आया और 'देव ने बन्धुमती के लिए वर दिया है' ऐसा कहता हुआ मन्दिर का द्वार बन्द करके, बाहर निकला और उनके (वसुदेव के साथ रथ पर सवार होकर घर की ओर चल पड़ा । नगर के लोग वसुदेव का रूप देखकर विस्मयविमुग्ध हो गये। शुभ मुहूर्त में सेठ ने अपनी कलावती अपूर्व सुन्दरी पुत्री बन्धुमती का विवाह वसुदेव के साथ करा दिया। उसके बाद राजा एणीपुत्र ने भी बन्धुमती-सहित वसुदेव को अपने अन्त:पुर में बुलाकर सम्मानित किया। वसुदेव बन्धुमती के साथ सुखभोग करने लगे (सत्रहवाँ बन्धुमती-लम्भ)। श्रावस्ती में एक दिन वसुदेव बन्धुमती के साथ सुखासन पर बैठे थे, तभी राजा एणीपुत्र की पुत्री प्रियंगुसुन्दरी की समीपवर्तिनी आठ नर्तकियाँ वहाँ आईं। वसुदेव जब बन्धुमती के साथ अन्त:पुर में गये थे, तभी प्रियंगुसुन्दरी ने उन्हें वहाँ देखा था और उसी समय से वह उनके प्रति अनुरक्त हो गई थी। प्रियंगुसुन्दरी ने अपनी नर्तकियों को यह जानने के लिए भेजा था कि बन्धुमती का पति कौन है, कैसा है और कहाँ से यहाँ आया है। नर्तकियों ने वसुदेव से यह सन्दर्भ छिपाते हुए उनका पूरा वृत्तान्त (शौरिपुर से भागने से प्रारम्भ करके अबतक का) उनके ही मुँह से उगलवा लिया। राजा एणीपुत्र ने जब प्रियंगुसुन्दरी के लिए स्वयंवर का आयोजन किया, तब उसने (प्रियंगुसुन्दरी ने) वसुदेव के प्रति पूर्वानुरागवश स्वयंवर में आये राजाओं में से किसी का वरण नहीं किया; क्योंकि उसके मनोभिलषित पति स्वयंवर में उपस्थित नहीं थे। ___नागीदेवी के कहने पर वसुदेव ने राजा एणीपुत्र के अन्त:पुर में प्रवेश किया। और उधर, देवी ने राजा से जाकर कहा कि प्रियंगुसुन्दरी का पति आ गया है, उसे अन्त:पुर में ले आओ। इस प्रकार, नागीदेवी की कृपा से प्रियंगुसुन्दरी को वसुदेव का समागम प्राप्त हुआ। अन्त में, राजा एणीपुत्र ने राजसी ठाटबाट से वसुदेव का विवाहोत्सव किया। वसुदेव वहाँ बन्धुमती और प्रियंगुसुन्दरी के साथ श्रेष्ठ भोग का आनन्द लेने लगे । 'रूप और यौवन की दृष्टि से उस श्रावस्ती
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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