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________________ वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा टाल पर आ गिरे । वसुदेव टाल से नीचे उतरे और वहाँ एक पुष्करिणी में हाथ-पाँव धोकर उन्होंने नगर में प्रवेश किया। नगर की विभूति को देखते हुए वह छूतशाला में जा पहुँचे। वहाँ अमात्य, सेठ, सार्थवाह, पुरोहित, नगर-रक्षक और दण्डनायक आदि धनाढ्य नागरिक मणि, रल और सोने का ढेर सामने रखकर जुआ खेल रहे थे। वसुदेव भी द्यूतक्रीड़ा में सम्मिलित हो गये। उन्होंने एक लाख मूल्य की अपनी हीरे की अंगूठी दाँव पर लगाई। अन्त में वह एक करोड़ का धन जीतकर उठे और उस धन को उन्होंने दीन-दुःखियों और अनाथों में बाँट दिया। इसी समय राजा जरासन्ध के सिपाहियों ने वसुदेव को बन्दी बना लिया; क्योंकि राजा जरासन्ध को प्रजापति शर्मा नामक ज्योतिषी ने बताया था कि जो जूए में एक करोड़ जीतकर गरीबों में बाँट देगा, वही राजा के शत्रु (कृष्ण) का पिता होगा। वसुदेव को राजदरबार में उपस्थित करने के बजाय वे सिपाही उन्हें चमड़े के थैले में डालकर छिनकटक पहाड़ पर ले गये और वहाँ से नीचे की ओर लुढ़का दिया। चमड़े के थैले में बन्द वसुदेव ने अनुभव किया कि लुढ़कते हुए उनको सहसा किसी ने थाम लिया है और उन्हें दूर ले जाकर जमीन पर रख दिया है। साँप जिस प्रकार केंचुल से बाहर निकल आता है, उसी प्रकार वसुदेव चमड़े के थैले से बाहर निकल आये। तभी, वसुदेव ने वेगवती को रोते हुए देखा । वसुदेव ने उसे आश्वस्त किया । तब वेगवती ने पिछली बातों का स्मरण दिलाते हुए वसुदेव से कहा कि बिछावन पर आपको न पाकर मैं जग पड़ी और आपके बारे में किसी प्रकार की सूचना न मिलने से रोने लगी। मुझे आशंका हुई कि भाई मानसवेग ने आपको अपहृत कर लिया है। विद्याबल से मैंने पता लगाया, तो ज्ञात हुआ कि सचमुच मानसवेग आपको हर ले गया है और भवितव्यतावश अभी आप विद्याधरों के बन्दी होकर उनकी बहन मदनवेगा से विवाह कर रहे हैं। वेगवती ने वसुदेव से आगे बताया कि वह उनको देखने की इच्छा से अपनी माँ की आज्ञा लेकर महापुर (सुवर्णाभपुर) से निकल पड़ी और आकाशमार्ग से भारतवर्ष को देखती हुई अमृतधार पर्वत पर पहुंची और उस पर्वत को पारकर अरिंजयपुर चली आई। वहीं उसने उनको (वसुदेव को) वेगवती के नाम से मदनवेगा को सम्बोधित करते देखा। इसी पर मदनवेगा रूठकर चली गई। तभी, हेफ्फग की बहन शूर्पणखी ने राजमहल में आग लगा दी और मदनवेगा का रूप धरकर उन्हें, वध की इच्छा से हर ले चली। वेगवती ने कहा कि प्रतिरोध करने पर मायाविनी शूर्पणखी ने अपने को मानसवेग के रूप में प्रदर्शित किया और उसकी विद्या छीन ली। फलत:, निरुपाय होकर वह जिस ओर शूर्पणखी गई थी, उसी ओर जाकर भटकने लगी। उसी समय उसे आकाशवाणी सुनाई पड़ी कि उसका पति छिन्नकटक पर्वत से नीचे गिर रहा है। आकाशवाणी सुनकर वह (वेगवती) तुरत इस प्रदेश में चली आई और पहाड़ से गिरते हुए, चमड़े के थैले में बन्द उनको (वसुदेव को) उसने थाम लिया। __ . इस प्रकार, विद्याधरी से मानवी बनी हुई वेगवती को प्राप्त कर वसुदेव बहुत प्रसन्न हुए और उसके मनोविनोद के लिए उसे साथ लेकर वरुणोदिका नदी के सैकत तट पर चले आये। वहाँ उन्होंने वेगवती के साथ पाँच नदियों की धाराओं के संगम में स्नान किया, फिर सिद्धों को प्रणाम कर बाहर आये। वहाँ उन दोनों ने स्वादिष्ठ फल खाये और फिर जल का पान और आचमन किया। वसुदेव के पास रहते हुए वेगवती ने प्रत्यक्ष आनन्द का लाभ लिया(पन्द्रहवाँ वेगवती-लम्भ) ।
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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