SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वसुदेवहिण्डी का स्रोत और स्वरूप अंशुमान् ने वहाँ की चूतसभा में इभ्यपुत्रों को हराकर प्रचुर मूल्यवान् धन प्राप्त किया और उसे वीणादत्त के घर में मुहरबन्द करके सुरक्षित रख दिया। वसुदेव ने भी द्यूतक्रीड़ा में विस्मयकारी विजय प्राप्त किया। पराजित इभ्यपुत्र वसुदेव के विषय में यह कहते हुए चले गये कि “विप्रवेश में छिपा हुआ यह अवश्य ही कोई देव, गन्धर्व या नागकुमार है !” वीणादत्त के नन्द और सुनन्द नाम के रसोइये ने उत्तम भोजन तैयार कर वसुदेव और अंशुमान् दोनों को तृप्त किया। पाकशास्त्रविशारद रसोइयों को वसुदेव ने, परिधान के मूल्यस्वरूप, एक लाख (रुपये) प्रीतिदान में दिये। किन्तु प्रीतिदान अस्वीकार करते हुए उन्होंने वसुदेव से निवेदन किया कि उनके (नन्द-सुनन्द के) पिता भी राजा सुषेण के रसोइया थे। आजीविका-वृत्ति से निवृत्त होने के बाद वे प्रवजित हो गये। तब उन दोनों ने पाकशास्त्र के अन्तर्गत चिकित्साशास्त्र का भी अध्ययन किया और पुण्ड्रदेश चले आये। वहाँ के राजा ने उन्हें न केवल आश्रय और वृत्ति दी, अपितु पितृतुल्य स्नेह भी दिया। ज्योतिषी ने उन्हें बताया था कि उनकी सेवा अर्द्धभरत के स्वामी के पिता के निकट सफल होगी। और, तुष्टिदान में जो उन्हें एक लाख देगा, वही अर्द्धभरत के अधिपति का पिता होगा। इस प्रकार कहकर, उन दोनों ने सेवक के रूप में स्वीकार करने का आग्रह करते हुए वसुदेव को प्रणाम किया। अन्त में, वसुदेव ने स्वीकृति दे दी और फिर वसुदेव के अनुरोध पर उन दोनों रसोइयों ने प्रीतिदान भी ले लिया। ___भद्रिलपुर में ही अंशुमान् की भेंट उसकी फुआ से हुई, जो अब आर्यिका हो गई थी। वहीं तारकसेठ की पुत्री सुतारा के साथ अंशुमान् का विवाह भी हो गया। इस प्रकार, वहाँ अंशुमान् के सम्बन्धियों का एक पूरा वर्ग बन गया। एक दिन वसुदेव ने वहाँ जिनोत्सव का आयोजन किया। उस अवसर पर उन्होंने राजा के समक्ष नागराग और किनरगीतक प्रस्तुत किया। राजा वस्तुत: राजा नहीं था, अपितु वह पुरुष के प्रच्छन्न वेश में राजकुमारी था। उत्सव समाप्त होते ही वसुदेव बीमार पड़ गये, किन्तु प्रच्छन्न राजकुमारी की परिचर्या से स्वस्थ हो गये । अन्त में, प्रच्छन्न रूप से राजकुमार के वेश में रहनेवाली उस राजकुमारी पुण्ड्रा के साथ वसुदेव का विवाह हो गया। कालक्रम से पुण्ड्रा गर्भवती हुई और उसने 'महापुण्ड्र' नामक कुमार को जन्म दिया। भद्रिलपुर की सारी प्रजाएँ परितुष्ट हो गईं। उन्होंने बड़े समारोह के साथ पुत्र-जन्मोत्सव मनाया। पुत्र के दर्शन से आनन्दित वसुदेव का समय सुख से बीतने लगा (दसवाँ पुण्ड्रा-लम्भ)। ___ एक दिन वसुदेव रतिश्रम से खिन्नशरीर होकर अपनी पत्नी पुण्ड्रा के साथ सोये हुए थे, तभी दीन-करुण भाव से रोने की आवाज सुनकर उनकी नींद खुल गई। सामने ही हाथ में रलपेटिका लिये कलहंसी नाम की प्रतिहारी खड़ी थी। वह उन्हें एक ओर ले गई और बोली : "आपकी पत्नी श्यामली (लम्भ २) आपको अपना प्रणाम निवेदित करती हैं। निरन्तर आपका स्मरण करती रहनेवाली देवी श्यामली ने ही मुझे आपके चरणों में भेजा है।" वसुदेव ने प्रतिहारी से पूछा : “राजा अशनिवेग (श्यामली के पिता) परिवार सहित कुशलपूर्वक हैं ? देवी श्यामली स्वस्थ हैं ?" प्रतिहारी बोली : “स्वामी ! सुनें । दुरात्मा अंगारक विद्याभ्रष्ट होकर हमसे झगड़ने आया था। आपके प्रताप से राजा अशनिवेग ने युद्ध में उसे पराजित कर दिया और किनरगीत नगर भी हथिया लिया। सम्प्रति, राज्यलाभ से हर्षित परिजनों के साथ
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy