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________________ वसदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा दिया है कि जो विद्याधर साधु के पास, जिनालय में, भार्या-सहित या सुप्त व्यक्ति को मारेगा, वह विद्याभ्रष्ट हो जायगा। इसीलिए, मैं आपसे वर माँगती हूँ कि आप मुझसे कभी वियुक्त न रहें। आप मेरे साथ रहेंगे, तो वह आप पर आक्रमण नहीं कर सकेगा। आशंकित श्यामली को वसुदेव ने अंगारक की ओर से होनेवाले अनाचारों के लिए आश्वस्त किया। दोनों सुखपूर्वक रहने लगे। वसुदेव ने श्यामली को संगीत की विशेष रूप से शिक्षा दी। साथ ही, दो विद्याएँ-बन्धविमोक्षणी (बन्धन से छुड़ानेवाली) और पत्रलघुकिका (पत्ते की भाँति हल्का बनानेवाली) भी दीं, जिन्हें उन्होंने शरवन (सरकण्डे के जंगल) में सिद्ध किया था। ___एक दिन श्यामली के साथ वसुदेव सोये थे कि अंगारक उन्हें आकाशमार्ग से हर ले चला। श्यामली ने अंगारक से बहुत अनुनय-विनय किया, तो उसने उसे डाँट दिया। अन्त में, श्यामली ने स्पष्ट कह दिया कि “मेरे पति को छोड़ दो, अन्यथा मैं तुम्हें स्वजन-सहित छोड़ दूंगी।” तब अंगारक ने क्रुद्ध होकर वसुदेव को फेंक दिया और वह घास-फूस से भरे पुराने कुएँ में जा गिरे। सुबह होने पर वे कुएँ से बाहर निकले (दूसरा श्यामली-लम्भ)। कुएँ से बाहर निकलने पर वसुदेव ने अपने को अंग-जनपद की चम्पानगरी में पाया। वहाँ उन्होंने अधेड़ उम्र के एक नागरिक से, मगधवासी गौतमगोत्रीय स्कन्दिल ब्राह्मण (वसुदेव का पूर्ववर्ती नन्दिसेन के भव का नाम-गोत्र) के रूप में अपना परिचय दिया और बताया कि उन्हें यक्षिणी से प्रेम हो गया था। वह उन्हें आकाशमार्ग से अपने इच्छित प्रदेश में ले जा रही थी, तभी किसी दूसरी यक्षिणी ने ईर्ष्यावश उनका पीछा किया और जब दोनों यक्षिणियाँ आपस में लड़ने लगीं, तब वह (वसुदेव) यहीं आकाश से गिर पड़े। चम्पानगरी के एक नागरिक से वसुदेव को सूचना मिली कि कुबेरतुल्य सेठ चारुदत्त की परम रूपसी पुत्री गन्धर्वदत्ता संगीतविद्या में पारंगत है। उसके रूप से मोहित ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य सभी संगीतविद्या में अनुरक्त हो उठे हैं। संगीतशिक्षा में जो उसे (कन्या को) पराजित कर देगा, उसी पुण्यात्मा की वह पत्नी बनेगी। उस नागरिक ने उन्हें यह भी बताया कि प्रत्येक महीने संगीतविदों के समक्ष निर्णय-परीक्षा का आयोजन किया जाता है। ___ सेठ चारुदत्त के दरबार में उपस्थित होने के लिए वसुदेव ने एक बहाना ढूँढ़ निकाला। चम्पा में दो संगीतज्ञ आचार्यों की जोड़ी बड़ी प्रसिद्ध थी। उनके नाम थे-सुग्रीव और जयग्रीव । वसुदेव ने मूर्ख का स्वांग रचकर सुग्रीव की निजी संगीतशाला में प्रवेश किया । उपाध्याय सुग्रीवने जब उन्हें अपनी शाला में भरती करने से इनकार कर दिया, तब उन्होंने रत्ननिर्मित कंगन ब्राह्मणी (उपाध्यायानी) को लाकर दिया। ज्ञातव्य है कि वसुदेव ने चम्पा में प्रवेश करते समय अपने आभूषणों को एक गुप्त भूमिखण्ड में छिपा दिया था। उपाध्यायानी ने कंगन दिखलाते हुए उपाध्याय सुग्रीव से कहा कि “मेधावी होना कोई आवश्यक नहीं। यह स्कन्दिल अपनी विद्या के लिए प्रयत्न करेगा।" पत्नी के इस अनुरोध पर सुग्रीव ने वसुदेव को संगीत सिखाना स्वीकार कर लिया। बाह्मणी का स्नेहाश्रय उनके लिए प्रोत्साहन बन गया। निर्णय-परीक्षा का जब समय आया, तब सुग्रीव, वसुदेव को संगीत में अनिपुण समझकर, उन्हें सेठ चारुदत्त की सभा में ले जाने को राजी नहीं हुआ। वसुदेव ने रत्नकंगन का जोड़ा लगाते हुए उपाध्यायानी से निवेदन किया। ब्राह्मणी ने वसुदेव को प्रोत्साहित किया :" यदि उपाध्याय
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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