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________________ वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा अपने बड़े भाइयों और भाभियों के नाम लिखा: “शुद्ध-स्वभाव होते हुए भी नागरिकों ने उसे मलिन कर दिया, इसलिए वसुदेव ने अग्नि प्रवेश किया ।" उस पत्र को श्मशान के एक खम्भे में बाँधकर वसुदेव झटपट वहाँ से खिसक गये और तेजी से, जैसे-तैसे रास्ते से दूर निकल जाने के बाद फिर सही रास्ते से चलने लगे । ४४ I इस प्रकार, अनाम और अज्ञात रहकर वसुदेव ने अपना हिण्डन प्रारम्भ किया । सन्ध्या के समय वह सुग्राम पहुँचे। वहाँ उन्होंने स्नान और भोजन किया। वह जिस घर में ठहरे थे, उसके निकट ही यक्षायतन था । वहाँ अनेक लोग एकत्र थे । वसुदेव के अपने नगर से भी कुछ आदमी हाँ आये हुए थे । वे नगर का, आज का समाचार सुना रहे थे कि कुमार वसुदेव अग्नि में प्रवेश कर गये । उनका सबसे प्यारा सेवक 'वल्लभ' उनकी जलती चिता को देख रोने लगा था। पूछने पर वह बोला : “लोकापवाद से डरकर कुमार वसुदेव ने अग्नि की शरण ली।” इस समाचार से चारों ओर रुलाई और चिल्लाहट शुरू हो गई। रुलाई की आवाज सुनकर राजा समुद्रविजय आदि नवों भाई घर से निकलकर श्मशान में आये । वहाँ कुमार के हाथ का लिखा क्षमापन- पत्र देखा और उसे पढ़कर वे सभी रोने लगे। कुछ देर रोने-धोने के बाद उन्होंने घी और शहद से चिता को सींचा, चन्दन, अगुरु और देवदारु की लकड़ियों से चिता को ढककर उसे फिर से प्रज्वलित किया । पुनः प्रेतकार्य सम्पन्न करके सभी अपने घर लौट गये ।” यह समाचार सुनकर वसुदेव निश्चिन्त हो गये कि उनका रहस्य प्रकट नहीं हुआ था और उनके नवों बड़े भाइयों को उनकी मृत्यु के सम्बन्ध में कोई शंका नहीं रह गई थी । और इसीलिए, वे उनकी खोज भी नहीं करायेंगे। इस प्रकार, वसुदेव का विचरना स्वच्छन्द और निर्विघ्न हो गया । अपनी नगरी द्वारवती (द्वारकापुरी) से भागकर वसुदेव सुग्राम पहुँचे थे। वहाँ से वह पश्चिम की ओर से चलकर विजयखेट नगर पहुँचे। वहाँ उन्होंने, विद्याध्ययन के निमित्त कुशाग्रपुर (आधुनिक राजगृह) से आये गौतम ब्राह्मण के रूप में अपना परिचय दिया । वहाँ के राजा जितशत्रु के दो पुत्रियाँ थीं : श्यामा और विजया । दोनों संगीत और नृत्यकला में निपुण थीं । वसुदेव ने उन दोनों के समक्ष अपनी नृत्य-गीतकला का वैशिष्ट्य प्रदर्शित किया। राजा जितशत्रु ने प्रसन्न होकर उनके साथ अपनी दोनों बेटियों का विवाह कर दिया । वसुदेव ने जब अपनी इन दोनों पत्नियों को क्षत्रियोचित युद्धविद्या से परिचय कराया, तब उन्होंने उनके ब्राह्मण होने की बात पर आशंका प्रकट की । अन्त में, वसुदेव ने उनपर अपना रहस्य प्रकट करते हुए उन्हें, घर से छलपूर्वक भागने की अपनी कहानी सुना दी । इससे वे सन्तुष्ट हो गईं । कालक्रम से, विजया से उनके एक पुत्र हुआ, जिसका नाम 'अक्रूर' रखा गया । वसुदेव एक वर्ष तक विजयखेट में सुखभोग करते रहे। एक दिन दो पथिकों ने उन्हें देखा और वे आपस में बात करने लगे कि कुमार वसुंदेव से इस व्यक्ति की अद्भुत समानता है । पथिकों की बातचीत सुनकर वसुदेव के कान खड़े हो गये और उन्होंने अब वहाँ रहना कल्याणकर नहीं समझा । श्यामा और विजया को विश्वास दिलाकर वह वहाँ से चल पड़े (पहला श्यामा-विजया लम्भ) ।
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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