SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 561
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वसुदेवहिण्डी : भाषिक और साहित्यिक तत्त्व ५४१ लक्खणजालंकियपाणी, सिरिवच्छंकियविसालवच्छो, गयवज्जमज्झो, अकोसपउमनाभी, सुबद्ध वट्टियक डिप्पएसो, तुरगगुज्झदेसो, करिकराकारोरुजुयलो, निगूढजाणुमंडलो, कुरुविंदा-' क्त्तसंठियपसत्थजंधो, कणयकुम्मसरिसपादजुयलो, मधुरगंभीरमणहरगिरो, वसभललियगमनो, पभापरिक्खित्तकंतरूवो।" (नीलयशालम्भ: पृ. १६२) अर्थात्, युवावस्था को प्राप्त ॠषभस्वामी का सिर छत्र के समान था, उनके केश दक्षिणावर्त्त, यानी दाईं ओर से घुँघराले और काले थे, उनका मुख पूर्णचन्द्र के समान मनोहर था, उनकी दोनों भौहें लम्बी थीं, खिले कमल की भाँति उनके नेत्र थे, सीधी लम्बी नाक उनके मुख की शोभा बढ़ाती थी, उनके होंठ कोमल प्रवाल की भाँति लाल थे, दन्तपंक्ति उज्ज्वल और निर्मल थी, शंख की आकृति जैसी उनकी ग्रीवा चार अंगुल लम्बी थी, नगरद्वार की अर्गला जैसी लम्बी उनकी भुजाएँ थीं, उनकी हथेली शुभलक्षणों से अंकित थी, विशाल वक्षःस्थल श्रीवत्स से अंकित था, ग्रैवेयक मणि की भाँति उनके शरीर का मध्यभाग था, कोषहीन, अर्थात् अर्द्धप्रस्फुटित कमल की भाँति उनकी नाभि थी, उनका कटिप्रदेश सुबद्ध और गोल था, उनका गुह्यप्रदेश घोड़े के समान था, उनकी जाँघें हाथी की सूँड़ जैसी थीं, जानुमण्डल पुष्ट और मांसल था, जंघा अतिशय प्रशस्त और कुरुविन्द मणि के समान गोल थी, स्वर्णकच्छप की भाँति उनके दोनों पैर थे; स्वर मधुर, गम्भीर और मनोहर था, वह वृषभ की भाँति ललितगति से चलते थे और इस प्रकार उनका कान्तरूप प्रभा से समुद्भासित था । इसी क्रम में एक शय्या ( पलंग) का उदात्त सौन्दर्य भी दर्शनीय है : “सुरपतिनीलमणिसुकयचक्कवालं, नवकणयचियसुकयफुल्लविरत्तगंधं, नाणारागभत्तिरइयं, रयणचित्तं, चित्तकम्मबिब्बोयणं, विपुलतूलीययवेणसमुच्चएणं, अच्छुयं भागीरहिरम्मपुलिणोवमं, पीढियापरंपरागयं, अभिरोहिणीयं सुकयउल्लोयं, आविद्धमल्लदामकलावं, महसुहं सयणीयमभिरूढो मि । " (नीलयशालम्भ : पृ. १८० ) अर्थात्, वसुदेव जिस पलंग पर चढ़े, वह इन्द्रनीलमणि से सुनिर्मित चक्रवालों (मण्डलों) से सुशोभित था; नवीन सुवर्ण से बने, अतएव गन्धहीन फूल उसमें जड़े थे; वह अनेक रंगों की रचनाओं से भूषित था, वह रत्नजटित था, चित्रकर्म द्वारा उसमें स्त्री की अनेक शृंगार चेष्टाएँ (बिब्बोक) अंकित थीं या अनेक प्रकार की चित्रकारियों से सज्जित तकिये (तकियावाची बिब्बोयण : देशी शब्द) विपुल रुई से बने विविध बिछावन उसपर बिछे थे, उपयोग के निमित्त किसी ने उसका स्पर्श भी नहीं किया था, वह गंगा के रमणीय पुलिन के समान प्रतीत होता था, उसमें पीढ़ियों की सीढ़ियाँ लगी थीं, आसानी से उसपर चढ़ा जा सकता था, उसमें सुन्दर ढंग से अगासी (छत) का निर्माण किया गया था, उसमें विभिन्न मालाएँ झूल रही थीं। इस प्रकार, वह पलंग महान् सुख देनेवाला था । पूरी 'वसुदेवहिण्डी' में इस प्रकार के अनेक उदात्त सौन्दर्य के चित्र अंकित हैं 1 इसमें विवाह मण्डप, पालकी, तीर्थंकर का समवसरण, दूकान, बाजार, मन्दिर, आश्रम, नगर, गोशाला, सरोवर, वेश्यागृह आदि के एक-से-एक चित्र उदात्त सौन्दर्य के सन्दर्भ में अवलोकनीय हैं।
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy