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________________ ५३४ वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति को बृहत्कथा के भीतर का मांसरस विषय-प्राप्ति का प्रतीक है, तो मार्ग का अवरोध सांसारिक प्रतिबन्ध का। जल का प्रवाह मरणकाल का प्रतीक है, तो कौए का हाथी के कलेवर से निकलना परभव में संक्रान्त होने का। ___ 'जम्बुकाहरण' की विषयवस्तु है कि कोई भील जंगल में घूमते समय बूढ़े हाथी को देखकर सँकरे स्थान में जा छिपा और वहीं से उसने हाथी को एक बाण मारा। हाथी को गिरा हुआ जानकर उसने डोरी को उतारे विना धनुष को रख दिया और फरसा लेकर दन्तमुक्ता के निमित्त हाथी के मृत शरीर पर प्रहार करने लगा। हाथी के गिरने से उसके नीचे एक महाकाय सर्प दबा पड़ा था। उसने भील को काट खाया। भील वहीं गिरकर ढेर हो गया। जंगल में घूमता हुआ एक सियार वहाँ आया। उसने एक साथ हाथी, मनुष्य, साँप और धनुष को गिरा हुआ देखा। भय से सियार पहले तो पीछे हट गया, बाद में मांसलोभ के कारण बार-बार आने लगा और उसे जब यह निश्चय हो गया कि ये सब निर्जीव हैं, तब सन्तुष्ट होकर देखने-सोचने लगा: हाथी तो जीवन भर के लिए मेरा भोजन बनेगा। मनुष्य और साँप कुछ दिनों के लिए आहार होंगे। आज (चर्मनिर्मित) धनुष की डोरी ही खाता हूँ। ऐसा निश्चय करके उस मूर्ख सियार ने ज्यों ही डोरी को दाँत से काँटा, त्यों ही धनुष का अगला हिस्सा जोर से उछलकर उसके तालू में जा धंसा और वह मर गया। इस कथा का विवेचन करते हुए कथाकार ने कहा है कि यदि वह सियार तुच्छ डोरी छोड़कर हाथी, मनुष्य और साँप के शरीर को खाने की इच्छा करता, तो और जीवों के शरीर भी उसे चिरकाल तक खाने को मिलते। इसी प्रकार, जो मनुष्य तुच्छ सख में बँधा रहकर परलोक की साधना से उदासीन हो जाता है. वह सियार की भाँति विनाश को प्राप्त करता है। अवश्य ही, उक्त कौए और सियार की नीतिपरक कथाएँ ब्राह्मण-स्रोत के प्रसिद्ध प्राचीन कथाग्रन्थ 'पंचतन्त्र,' 'हितोपदेश' आदि पर आधृत हैं, जिन्हें कथाकार संघदासगणी ने, जैन दृष्टि से पुन: संस्कार करके परलोकसिद्धि-विषयक अभिनव आयाम के साथ उपन्यस्त किया है। शेष आहरण'-संज्ञक कथाएँ भी सम्बद्ध पात्रों के गुण-दोष तथा लोक-परलोक के विवेचन के क्रम में ही सन्दर्भित हुई हैं। पाँचवें सुमित्र राजा के 'आहरण' में आत्मा का निरूपण तथा मांसभक्षण-विषयक शास्त्रार्थ का रुचिकर और शास्त्रीय उल्लेख हुआ है। छठे अदत्तादान-विषयक 'आहरण' में ग्रामस्वामी मेरु के दोष और जिनदास के गुण की चर्चा हुई है। सातवें मैथुन-विषयक 'आहरण' में पुष्यदेव की स्त्री-लोलुपता और जिनपालित सुवर्णकार की स्त्री-विरक्ति की कथा कही गई है। इसी प्रकार, आठवें गोमाण्डलिक चारुनन्दी और फल्गुनन्दी के 'आहरण' में परिग्रह के दोष और अपरिग्रह के गुणों का कथापरक वर्णन किया गया है । इस प्रकार, कथाकार द्वारा उपन्यस्त प्रायः सभी आहरणों में अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह की कथा का विनियोग हुआ है। पुन: वासव, मन्मन, यमपाश, धारण तथा रेवती के कथा-माध्यम से अहिंसा और सत्य की श्रेयस्करता प्रतिपादित की गई है। वासव के 'उदाहरण' में 'तो ब्राह्मण-परम्परा के अहल्याजार १. हितोपदेश' में एतद्विषयक कथा का व्याध के चिन्तन से सम्बद्ध समानान्तर श्लोक इस प्रकार है : मासमेकं नरो याति द्वौ मासौ मृगशूकरौ। अहिरेक दिनं याति अद्य भक्ष्यो धनुर्गुणः । (मित्रलाभ : श्लो. १६७)
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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