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________________ ५३२ वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा यहाँ भी कपिजलों का सोचना कुछ अन्यथा ही हो गया। कपिंजलों ने मामा मानकर कौओं की खातिरदारी की और कृतघ्न कौए अपने भागिनों (कपिजलों) को लांछित करके चले गये। __इस प्रकार, कथाकार संघदासगणी ने चिन्तित अर्थ के विपर्यास या अन्यथात्व को संज्ञापित करनेवाली कथाओं को 'आख्यानक' कोटि की कथा में श्रेणीबद्ध किया है। 'परिचय'-संज्ञक कथाएँ अपने नाम के अनुसार ही पात्र-पत्रियों के परिचय प्रस्तुत करने के निमित्त उपन्यस्त की गई हैं। इनमें प्राय: मूल कथा के विशिष्ट पात्रों के ही परिचय परिनिबद्ध हैं। संख्या की दृष्टि से कुल परिचय-कथाएँ चौदह हैं : ___'अगडदत्तस्स सामदत्ताए परिचओ' (३७.१), 'विमलसेनापरिचओ' (५४.६), 'रामकण्हाणं अग्गमहिसीणं परिचओ' (७८.१), 'अन्धगवहिपरिचओ' (१११.१), 'सामा-विजयापरिचओ' (१२१.११), 'सामलीपरिचओं' (१२३.१); 'अंगारकपरिचओ' (१२४.१); 'गंधब्बदत्तापरिचओ' (१३३.१४), 'अमियगतिविज्जाहरपरिचओ' (१३९.१३), 'वइरसेनकारिओ ललियंगयदेवपरिचओ' (१७४.२८); 'नीलजसापरिचओ' (१७८.१५), 'रत्तवतीलसुणिकापरिचओ' (२१९.६), 'सोमसिरिपरिचओ' (२२२.१३) तथा 'पियंगुसुंदरीपरिचओ' (२६५.२०),। कथाकार ने 'चरित'-संज्ञक कथाओं में शलाकापुरुषों या तत्कोटिक पुरुषों के चरित उपन्यस्त किये हैं। मूल 'वसुदेवहिण्डी' के अन्तर्गत निम्नांकित चरित-कथाएँ गुम्फित हुई हैं : 'जंबुसामिचरियं' (२.४), 'धम्मिल्लचरियं' (२७.३), समुद्दविजयाईणं नवण्हं वसुदेवस्स य पुव्वभवचरियं(११४.४); 'विण्हुकुमारचरियं' (१२८.१८), 'उसभसामिचरियं' (१५७.१), 'रामायणं' (रामचरित, २४०.१५), 'सिज्जंसक्खायं उसभसामिसंबद्धं पुव्वभवचरियं (१६५.१९), 'मिगद्धयकुमारस्स भद्दगमहिसस्स य चरियं' (२६८.२७); संतिजिणचरियं' (३४०.१); 'कुंथुसामिचरियं' (३४४.१) एवं 'अरजिणचरियं' (३४६.१६) । इस प्रकार, इन कुल ग्यारह चरित-कथाओं में धर्म, अर्थ और काम के प्रयोजन से सम्बद्ध दृष्ट, श्रुत एवं अनुभूत कथावस्तुओं का वर्णन उपन्यस्त हुआ है। विशिष्ट रूप से किसी कथा की प्रत्यासत्ति की स्थिति में कथाकार ने उस कथा को 'प्रसंग' नाम से उपस्थित किया है। इस सन्दर्भ में, कुल एकमात्र कथा 'वसंततिलयागणियापसंगो' शीर्षक से उपलब्ध होती है। यह कथा धम्मिल्ल के चरित की प्रत्यासत्ति में, प्रसंग के पल्लवन के लिए, कथावस्तु के मध्य की कड़ी की भाँति उपनिबद्ध हुई है। ___'आत्मकथा' की संज्ञा से भी कई खण्डकथाएँ कथाकार ने प्रस्तुत की हैं। जैसे : 'अगडदत्तमुणिणो अप्पकहा' (पृ.३५), 'उप्पनोहिणाणिणो मुणिणो अप्पकहा' (पृ.१११), 'चारुदत्तस्स अप्पकहा' (पृ.१३३); 'मिहुणित्थियाऽऽवेइया पुव्वभविया अत्तकहा' (पृ.१६६); ललियंगयदेवकहिया पुव्वभविया अत्तकहा' (पृ.१६६); 'सिरिमइनिवेइया निण्णामियाभवसंबद्धा अत्तकहा' (पृ.१७१), 'चित्तवेगा अत्तकहा' (पृ.२१४), 'वेगवतीए अप्पकहा' (पृ.२२७) एवं 'विमलाभा-सुप्पभाणं अज्जाणं अत्तकहा' (पृ.२२३)। जैसा कि प्रत्येक कथा-शीर्षक से स्पष्ट है, इन कथाओं में यथोक्त पात्रों ने अपनी-अपनी आत्मकथा कही है, इसलिए कथाकार ने इन्हें 'आत्मकथा' की सटीक संज्ञा दी है। कथा की इन संज्ञाओं के अतिरिक्त, कथाकार ने 'आहरण' और 'उदाहरण-संज्ञक कथाओं की भी रचना की है। 'वसुदेवहिणडी' में उपलब्ध आहरण' संज्ञक कुल आठ कथाएँ इस प्रकार हैं : 'सच्छंदयाए वसुदत्ता-आहरणं' (पृ.५९); 'महिसाहरणं' (पृ.८५), 'वायसाहरणं' (पृ.१६८);
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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