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वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा
कथाओं के भेद हैं। 'ललियंगयणाय' के उपसंहार में कथाकार ने संकेत भी किया है : 'एयस्स दितस्स उवसंहारो (१०.७)।' कथा है कि वसन्तपुर के राजा शतायुध की रानी ललिता उसी नगर के एक कलाकुशल गुणी सार्थवाह - पुत्र ललितांगद पर रीझ गई। रानी की दासी प्रच्छन्न रूप से ललितांगद को रानी के पास पहुँचाने लगी । अन्तःपुर के महत्तरकों से राजा को जब इसकी सूचना मिली, तब उसने छानबीन शुरू की । आत्मरक्षा के लिए ललितांगद को रानी के सण्डास में छिपना पड़ा। वह सण्डास राजधानी मुख्य खाई से सम्बद्ध था । वर्षा ऋतु आने पर सण्डास में जब पानी भर गया, तब उसी के प्रवाह में बहकर वह खाई के किनारे जा लगा। मूर्च्छित अवस्था में उसे उसकी धाई उठा ले गई, जहाँ वह सेवा-शुश्रूषा के बाद स्वस्थ हुआ ।
इस कथा के उपसंहार में बताया गया है कि ललितांगद जीव का प्रतीक है। रानी के साथ उसकी भेंट मनुष्य-जन्म का प्रतीक है। दासी इच्छा का और रानी के घर में ललितांगद का प्रवेश विषय-प्राप्ति का प्रतीक है । ललितांगद की खोज करनेवाले राजपुरुष रोग, शोक, भय, शीत और ताप के प्रतीक हैं। सण्डास गर्भ का प्रतीक है। ललितांगद के सण्डास में रहते समय रानी उसे जो अपने भोजन का शेष खाने को देती थी, वह, गर्भस्थित शिशु को गर्भवती माँ के द्वारा खाये गये अन्न के द्वारा मिलनेवाले रस का प्रतीक है। ललितांगद का खाई से निकलना प्रसव - काल और धाई, देह का उपग्रह करनेवाली कर्मविपाक - प्राप्ति का प्रतीक है।
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इसी प्रकार, धनश्री की कथा (णाय) में धनश्री पर आसक्त डिण्डी (नगर के आरक्षी - पदाधिकारी या कोई छैला) को अपने प्राण से हाथ धोना पड़ा। धनश्री ने ही उसे पहले योगमद्य पिलाकर बेहोश कर दिया, फिर उसी की तलवार से ही उसकी हत्या कर दी।
तीसरी गाय - कथा में वर्णन है कि ताम्रलिप्ति के राजा रिपुदमन स्वाच्छन्द्य या दुराग्रह (यानी, जबरदस्ती अल्पभारवाही यान पर राजा के अपनी रानी को भी साथ लेकर सवार हो जाने) के कारण कोक्कास द्वारा चालित यान यान्त्रिक गड़बड़ी से तोसली नगरी के राजा के राज्य में जाकर दुर्घटनाग्रस्त हो गया। उस यान पर सवार राजा-रानी दोनों बच तो गये, लेकिन तोसलीनरेश ने राजा को बन्दी बना लिया और रानी को अपने अन्तःपुर में रख लिया ।
इस प्रकार, कथाकार ने इन तीनों ज्ञातकथाओं में विषयासक्त मनुष्य की दुर्गति की ओर संकेत किया है। ललितांगद और डिण्डी यौनसुख की आसक्ति रखते थे और राजा रिपुदमन अपनी रानी साथ यान-विहार की आसक्ति में पड़ गया था। इस प्रकार, ये तीनों 'ज्ञात' - संज्ञक कथाएँ विशुद्ध कामकथाएँ हैं ।
'वसुदेवहिण्डी' में 'उदन्त' - संज्ञक दो कथाओं का उल्लेख हुआ है। प्रथम, कथोत्पत्ति-प्रकरण में, 'अत्थविणिओगविरूवयाए गोपदारगोदंतं ' ( ५३.६) तथा द्वितीय, धम्मिल्लहिण्डी में, 'नागरियछलिअस्स सागडिअस्स उदंतं' (५७.९) । प्रथम 'उदन्त' में वर्णन है कि अंग- जनपद की एक गोप-टोली को चोरों ने लूट लिया। लूटने के क्रम में वे एक प्रथमप्रसूता रूपवती तरुणी को उठा ले गये और उसे उन्होंने चम्पानगर के, गणिका के बाजार में बेच दिया। तरुणी का नवजातपुत्र जब बड़ा हुआ, तब घी का व्यापार करने के क्रम में वह चम्पानगर पहुँचा। वहाँ उसने गणिका के घर में तरुण पुरुषों को स्वच्छन्द क्रीड़ा करते देखा । उसकी भी कामक्रीडा करने की इच्छा हुई । वह जब गणिका - गृह में घुसा, तब वहाँ उसे अपनी माँ ही पसन्द आ गई। उसने इच्छित शुल्क जमा कर दिया । सन्ध्या में स्नात-विभूषित होकर जब वह अपनी माँ : गणिका के पास चला, तभी