SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 501
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वसुदेवहिण्डी में प्रतिबिम्बित लोकजीवन ४८५ बार व्यंग्य भी कसा था कि वह गणिका के रसविशेष को नहीं जानता है। इस प्रकार, कथाकार द्वारा वर्णित श्रावस्ती नगरी की अनेक सांस्कृतिक विशेषताएँ 'वसुदेवहिण्डी' में कथाबद्ध हुई हैं। कथाकार ने मिथिला-जनपद का भी वर्णन किया है, जो यथाप्राप्त वैदिक वर्णनों से भिन्न है। इस जनपद या नगरी के राजा जनक थे। इनका पुरोहित शुनकमेध था, जो राजा की शान्ति के निमित्त छागमेध करता था। राजा जनक के ही उद्यान की जुताई के समय, हल की नोक के आगे शिशु सीता मिली थी, जिसे मन्दोदरी के अमात्य चुपके से (तिरस्करिणी विद्या द्वारा) जनक की फुलवारी में रख आये थे। मिथिलानगरी का ही एक राजा पद्मरथ नाम का था। वह वासुपूज्य साधु का अनुयायी था। एक बार वासुपूज्य मुनि जब चम्पा में विहार कर रहे थे, तब उनकी वन्दना के लिए पद्मरथ मिथिला से चलकर चम्पापुरी गया था। मिथिला का ही एक दूसरा राजा सुमेरु था, जिसके तीन पुत्र थे : नमि, विनमि और सुनमि । ब्राह्मणों की मान्यता के अनुसार, नमि ने मिथिला की स्थापना की थी। कथाकार संघदासगणी के अनुसार, नमि ने पेशावर (पुरुषपुर) की लड़की अलम्बुषा से ब्याह किया था, जिससे शंखरथ नामक पुत्र हुआ था और शंखरथ से देवपुत्र नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। अन्य सूचनानुसार, देवपुत्र, शंखरथ का ही दूसरा नाम था। उन्नीसवें तीर्थंकर मल्लिनाथ (श्वेताम्बर मतानुसार स्त्री-तीर्थंकर मल्ली) मिथिला के ही रल थे, जिन्होंने सम्मेदशिखर पर निर्वाण प्राप्त किया था। इन जनपदों के अतिरिक्त कथाकार ने कुणाल, शालिग्राम, सिंहलद्वीप, सिन्धु, सुकच्छ, श्वेता आदि और भी कई जनपदों की विषयबहुल विविध-विचित्र कथाओं का वर्णन किया है। वस्तुतः, कथाकार द्वारा प्रयुक्त विजय, विषय, जनपद, देश, नगर आदि प्रायः समानार्थी प्रतीत होते हैं और उन्होंने इनके प्रयोग में किसी सूक्ष्म भेदकता का विनियोग बहुत कम किया है। वर्णन की दृष्टि से, कुछ नगरों की तो उन्होंने इतनी अधिक चर्चा की है कि उसकी महत्ता जनपद से भी अधिक हो उठी है। एक-एक नगर अपने-आपमें एक जनपद या देश की गरिमा से सम्पन्न हो उठा है। उदाहरण के लिए, मुख्यतया पोतनपुर, भद्रिलपुर, कम्पिल्लपुर, कुशाग्रपुर, अयोध्या, चम्पा, वाराणसी, हस्तिनापुर, ताम्रलिप्ति, चमरचंचा, रथनूपुरचक्रवाल, गगनवल्लभ आदि नगर विशेष उल्लेख्य हैं। विद्याधरों का गगनवल्लभ नगर तो अतीव विस्मयजनक था। कथाकार ने लिखा है : इसी प्रदेश में वैताढ्य नाम का पर्वत है। भारतवर्ष से पृथक्, इसके पूर्व और पश्चिम भाग की तलहटी को लवणजल का समुद्र पखारता रहता है। आकाशचारी विद्याधरों द्वारा अधिकृत इसकी उत्तर और दक्षिण दो श्रेणियाँ हैं। उत्तर श्रेणी में नभोविहार में समर्थ देवों के लिए भी विस्मयजनक गगनवल्लभ नाम का नगर है। उसमें विद्याधरों के बल और माहात्म्य का मथन करनेवाला विद्युदंष्ट्र नाम का राजा रहता था। उसने सभी विद्याधरों को अपने वश में कर लिया था। एक सौ दस नगरों से सुशोभित दोनों विद्याधर-श्रेणियों का उपभोग वह अपने पराक्रम से करता था। कथाकार संघदासगणी ने जिन जनपदों और नगरों का वर्णन किया है, वे प्रायः सभी 'बृहत्कल्पसूत्रभाष्य' में भी उल्लिखित हैं। जैन उल्लेख के अनुसार, प्राचीन भारत में साढ़े पच्चीस राज्यों (भुक्तियों या जनपदों) का अस्तित्व भूगोल, इतिहास, राजनीति और धर्म की दृष्टि से अपना विशेष महत्त्व रखता था। तत्कालीन जनपदों और उसकी राजधानियों की स्थिति इस प्रकार थी :
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy