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वसुदेवहिण्डी में प्रतिबिम्बित लोकजीवन से ही प्रारम्भ होता था तथा उत्तरप्रदेश में उत्तरपांचाल, यानी बरेली जिले में धंसता हुआ वह कोशल-प्रदेश से होकर सीधे कपिलवस्तु पहुँचता था।'
___ कथाकार द्वारा वर्णित कोशल-जनपद की राजधानी अयोध्या थी। विनीता और साकेत अयोध्या के ही पर्यायवाची (नाम) थे। विनीता नाम के अनुसार ही यहाँ की प्रजाएँ विनीत थीं। प्रजाओं की विनम्रता को देखकर ही इन्द्र द्वारा सन्दिष्ट वैश्रवण ने विनीता नाम की राजधानी का निर्माण कराया था, जो बारह योजन लम्बी और नौ योजन चौड़ी थी। पुराकाल में नाभिकुमार के बाद ऋषभस्वामी यहाँ के राजा हुए थे। यहाँ की प्रजाएँ उग्र, भोग, राजन्य और नाग इन चार गणों में विभक्त थीं। परवर्ती-कालीन कोशल-जनपद का संगम नामक सन्निवेश ब्राह्मणों की आवासभूमि के रूप में प्रतिष्ठित हुआ था। कोशल के पद्मिनीखेट का निवासी भद्रमित्र श्रेष्ठ सार्थवाहों में परिगणनीय था। कथाकार ने कोशल-जनपद की भौगोलिक अवस्थिति श्रावस्ती-जनपद के उत्तर में मानी है। इस जनपद को कथाकार ने 'सव्वजणवयप्पहाणो' (सभी जनपदों में प्रमुख) कहा है। वसुदेव की पत्नी रोहिणी कोशल-जनपद के रिष्टपुर के राजा रुधिर की पुत्री थी। रोहिणी के स्वयंवर में विभिन्न जनपदों के राजा एकत्र हुए थे, जिनमें जरासन्ध, कंस, पाण्डु, दमघोष, भीष्मक, द्रुपद, शल्य, कपिल, पद्मरथ, समुद्रविजय आदि राजाओं के नाम उल्लेख्य हैं। अयोध्या नगरी के राजा दशरथ और उनके पुत्र राम की कथा का वर्णन भी कथाकार ने किया है। प्रसेनजित् को कथाकार ने कुलकर के रूप में स्मरण किया है, जिन्होंने 'हाकार'-'माकार' का अतिक्रमण करनेवाली प्रजाओं के लिए 'धिक्कार' की दण्डनीति चलाई थी। बुद्ध के समय, प्रसेनजित् कोशल के राजा थे। अजातशत्रु ने उन्हें एक बार हराया था। पर, उन्होंने उस हार का बदला बाद में ले लिया। प्रसेनजित् को उसके बेटे विडूडभ ने गद्दी से उतार दिया । वह अजातशत्रु से सहायता माँगने राजगृह गया और वहीं उसकी मृत्यु हो गई।
कथाकार के संकेतानुसार, गन्धार-जनपद की राजधानी पुष्कलावती नगरी का राजा नग्नजित् था। उसकी रूपवती और संगीत-कलाकुशला पुत्री गन्धारी का कृष्ण ने हरण करके उसे अपनी पत्नी बना लिया था। कथाकार ने भौगोलिक दृष्टि से गन्धार-जनपद की अवस्थिति जम्बूद्वीप के अपरविदेह-क्षेत्र के गन्धिलावती विजय के गन्धमादन और वक्षार (वक्षस्कार) पर्वत के निकटवर्ती वैताढ्य पर्वत पर मानी है, जहाँ की राजधानी गन्धसमृद्ध नाम का नगर था। यहाँ के नागरिक बड़े समृद्ध थे। यहाँ का राजा महाबल था, जो अपने जनपद का बड़ा हितैषी था। इसे पितृ-पितामहपरम्परा से राज्यश्री प्राप्त हुई थी। निश्चय ही, यह गन्धार-जनपद आगम-प्रसिद्ध था। बौद्ध साहित्य से पता चलता है कि गन्धार के राजा पुष्करसारि थे। इस सम्बन्ध में डॉ. मोतीचन्द्र ने कई नये ऐतिहासिक और राजनीतिक साक्ष्यों या तथ्यों का अनुमान किया है।
कथाकार के वर्णनानुसार, चेदि-जनपद का राजा शिशुपाल था। रुक्मिणी-हरण के बाद कृष्ण ने युद्ध में इसका वध किया था। 'जैनेन्द्रसिद्धान्तकोश' के अनुसार, हूणवंशी तोरमाण ही शिशुपाल था। कथाकार ने चेदि-जनपद में अवस्थित शुक्तिमती नगरी का उल्लेख किया है। यहाँ के राजा का नाम उपरिचर वसु था। इसी नगरी में क्षीरकदम्ब नामक वेदपाठी उपाध्याय रहते थे,
१.द्र.'सार्थवाह' (वही): पृ.५० २.उपरिवत्
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