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________________ वसुदेवहिण्डी में प्रतिबिम्बित लोकजीवन ४७१ - चौथे नीलयशालम्भ में कथाकार ने लिखा है कि मन्दर, गन्धमादन, नीलवन्त और माल्यवन्त पर्वतों के मध्य बहनेवाली शीता महानदी द्वारा बीचोबीच विभक्त. उत्तर कुरुक्षेत्र बसा हुआ था (पृ. १६५)। शीता महानदी समुद्र के प्रतिरूप थी। कथा है कि पुष्कलावतीविजय पुण्डरीकिणी नगरी के चक्रवर्ती राजा वज्रदत्त की रानी यशोधरा को जब समुद्र में स्मान करने का दोहद उत्पन्न हुआ, तब राजा बड़ी तैयारी के साथ समुद्र जैसी शीता महानदी के तट पर पहुँचा (ततो राया महया इड्डीए सीयं महानइं समुद्दभूयं गतो; कथोत्पत्ति : पृ. २३)। रानी यशोधरा ने उस महानदी में स्नान करके अपने दोहद की पूर्ति की। इस प्रकार, कथाकार द्वारा उपन्यस्त वर्णन से स्पष्ट है कि जम्बूद्वीप में व्यापक रूप से प्रवाहित शीता महानदी का उस युग में अतिशय महत्त्व था। पुराणों में भी सीता (शीता) नदी का उल्लेख है। 'मत्स्यपुराण' (१२०.१९-२३) के अनुसार, शैलोदा का उद्गम अरुणा पर्वत से हुआ है, परन्तु 'वायुपुराण' (४७.२०-२१) के अनुसार, वह नदी मुंजवत् पर्वत की तराई में स्थित एक हृद से निकलती थी। वह चक्षुस् और सीता के बीच बहती थी और लवणसमुद्र में गिरती थी। डॉ. मोतीचन्द्र के अनुसार, चक्षुस् वंक्षु नदी है और सीता कदाचित् तारीम। तारीम की घाटी के उत्तरी नखलिस्तानों में भारतीय प्रभाव बहुत मजबूत था। वहाँ स्थानीय ईरानी बोली के अतिरिक्त भारतीय प्राकृत का व्यवहार होता था। वहाँ की कला पर भारतीय संस्कृति की छाप स्पष्ट है।' उपर्युक्त नदी-प्रसंगों के विवरण से स्पष्ट है कि कथाकार संघदासगणी द्वारा कथा के माध्यम से उपन्यस्त नदियाँ भारतीय सभ्यता और संस्कृति के चरम उत्कर्ष की सन्देशवाहिका हैं। यथावर्णित नदियों का महत्त्व केवल सांस्कृतिक और ऐतिहासिक न होकर राजनीतिक और व्यापारिक भी है। कथाकार ने द्वीपों, पर्वतों, क्षेत्रों और नदियों के माध्यम से न केवल आसेतुहिमाचल भारत का, अपितु सम्पूर्ण मध्य-एशिया का प्राकृतिक और राजनीतिक भूगोल उपस्थित किया है, जिसमें अनेक ऐतिहासिक आयाम अपनी ऐतिह्यमूलक विशेषताओं के साथ जुड़े हुए हैं। भारत का अपना कुछ ऐसा भौगोलिक वैशिष्ट्य रहा है कि बलखखण्ड, हिन्दूकुशखण्ड तथा भारतीय खण्ड, यानी महाजनपथ, कौटिल्य के शब्दों में हैमवतपथ के तीनों खण्ड एक दूसरे से अनुबद्ध हैं। महान् भूगोलविद् कथाकार ने अपने कथा-परिवेश में बृहत्तर भारत की इसी भौगोलिक अनुबद्धता का दिग्दर्शन प्रस्तुत किया है। जनपद, नगर, ग्राम, सन्निवेश आदि : संघदासगणी द्वारा उपन्यस्त जनपद, नगर, ग्राम, सन्निवेश आदि के वर्णनों से तत्कालीन भौगोलिक अवस्थिति का ज्ञान तो होता ही है, राजनीतिक परिस्थिति का भी पता चलता है। भारत के प्रसिद्ध प्राचीन सोलह जनपदों में संघदासगणी ने दस जनपदों का वर्णन किया है : अंग, अवन्ती, काशी, कुरु, कौशल, गन्धार, चेदि, मगध, वत्स और शूरसेन । कथाकार ने इनके अतिरिक्त और भी कई प्राचीन स्थानों का जनपद के नाम से उल्लेख किया है। जैसे : आनर्त, कुशार्थ (कुशावर्त), सुराष्ट्र, शुकराष्ट्र, उत्कल, कामरूप, कोंकण, खस, चीनस्थान, चीनभूमि, यवन, टंकण, बर्बर, विदर्भ, शालिग्राम, सिंहलद्वीप, सिन्धु, सुकच्छ, श्वेता और हूण। इन जनपदों के वर्णन के क्रम में १. द्र. 'सार्थवाह' (वहीं), : पृ. १७५
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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