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________________ वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा उत्तर-पूर्व दिशा की ओर चले। हूण, खस और चीनभूमि को पारकर वे वैताढ्य पर्वत की तराई में स्थित शंकुपथ पहुँचे । कथाकार ने शंकुपथ पार करने का विशद और रोमांचकारी वर्णन किया है। ___सभी सार्थों ने पड़ाव डाला। रसोई तैयार की। जंगली फल भी भोजन में सम्मिलित किये गये। भोजन करने के बाद सार्थबन्धुओं ने तुम्बरु फल को कूटकर चूर्ण तैयार किया। मार्गदर्शक या अग्रगामी (पुरंगम) सार्थ ने निर्देश देते हुए कहा : सभी कोई पोटली में चूर्ण भरकर अपनी कमर से लटका लें और अपनी-अपनी वस्तुओं को थैले में भरकर काँख से बाँध लें। उसके बाद हम सभी पर्वत-शिखर की नुकीली कीलों को हाथ से पकड़कर, उसके नीचे बहनेवाली विजया नदी के अथाह हृद के शंकुपथ को पार करेंगे । जब हाथ पसीजने लगेंगे, तब तुम्बरु-चूर्ण लगाकर, हाथों को रुखड़ा कर कीलों को पकड़ेंगे, अन्यथा पत्थर की कील से हाथ छूटने पर हम सभी बेसहारा होकर दुस्तर हृद में गिर पड़ेंगे। ___अग्रगामी की बात मानकर सभी सार्थों ने वैसा ही किया और शंकुपथ को पार करके वे किसी एक जनपद में पहुँच गये। वहाँ से चलकर सभी सार्थवाह इषुवेगा नदी के तट पर पहुँचे और पड़ाव डाला। पके हुए जंगली फलों का भोजन किया। फिर, मार्गदर्शक ने निर्देश और चेतावनी देते हुए कहा : वैताढ्य-पर्वत से निकली इस अथाह इषुवेगा नदी में जो भी उतरेगा, उसे तीर की तरह बहनेवाली धारा बहा ले जायगी। इसलिए, तैरकर पार करने की इच्छा से इस नदी में पैठना सम्भव नहीं है। ऐसी स्थिति में वेत्रलता के सहारे इस नदी को पार किया जा सकेगा। जब उत्तर की हवा चलती है, तब, पहाड़ से होकर एक साथ निकलनेवाली, उस हवा के झोंके से गोपुच्छाकार एवं स्वभावत: लचीली और ठोस वेत्रलताएँ दाहिनी और झुकती हैं और झुककर इषुवेगा नदी के दायें तट पर पहुँचती हैं। इन्हीं वेत्रलताओं को पकड़कर यात्री नदी के दक्षिण तट पर पहुँच जाते हैं। फिर, जब दक्षिण की हवा चलती है, तब वेत्रलताएँ उत्तर की ओर झुकती हैं और पार जाने को इच्छुक यात्री वेत्रलताओं को पकड़कर उत्तरी तट पर पहुँच जाते हैं । इसलिए, हम सभी अनुकूल हवा की प्रतीक्षा करें। बुधस्वामी ने बृहत्कथाश्लोकसंग्रह' (१८.४३३-३५) में इसे ही 'वेत्रपथ' कहा है। __मार्गदर्शक के निर्देशानुसार सभी सार्थवाहों ने अपनी-अपनी वस्तुएँ कमर से बाँध ली और वेत्रलता के पोर के बिचले हिस्से को पकड़ लिया और जब दक्षिण की हवा चली, तब वे सभी नदी के उत्तरी तट पर उतर गये और वेत्रलता से सघन पर्वतशिखरों के बीच रास्ता खोजते हुए टंकणदेश जा पहुँचे गये। वहाँ से फिर एक पहाड़ी नदी के तीर पर पहुँचकर सीमान्त-क्षेत्र में उन्होंने पड़ाव डाला । वहाँ भोजन से निवृत्त होने के बाद, मार्गनिर्देशक के सूचनानुसार उन सभी ने अपनी-अपनी वस्तुओं को अलग रख दिया। फिर, लकड़ी के ढेर में आग लगाकर वे सभी एक ओर जा दुबके । आग देखकर टंकण (म्लेच्छजाति के लोग) वहाँ आ पहुँचे । उन्होंने सार्थवाहों का सारा माल ले लिया और बदले में बकरे और फल छोड़कर अपने जाने के इशारे के लिए एक दूसरी आग जलाकर वापस चले गये। सभी सार्थवाहों ने वहाँ बँधे हुए बकरे और फल ले लिये। उसके बाद सीमा नदी के तट से प्रस्थान करके वे सभी अजपथ पहुँच गये। विश्राम और भोजन के बाद पुरोगामी के निर्देशानुसार वे सभी अपनी-अपनी आँखों पर पट्टियाँ बाँधकर बकरे पर सवार हो गये और तीखे चढ़ाववाले 'वज्रकोटि-संस्थित' पर्वत के पार चले गये। ठण्डी हवा की मार से
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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