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वसुदेवहिण्डी का स्रोत और स्वरूप
शर्मा सारस्वत-कृत हिन्दी अनुवाद के साथ प्रकाशित 'कथासरित्सागर' के प्रथम खण्ड की भूमिका में कहा है कि क्षेमेन्द्र के विपरीत सोमदेव 'पंचतन्त्र' के लेखक की तरह कथा कहने की प्रतिभा के महाकोष थे । वह पाठक के मन को आयासित किये विना सावधानी से अभीष्ट अर्थ को अभिव्यक्त करने की क्षमता से सम्पन्न थे । उनकी कथाओं का रुचिकर रूप कभी नहीं छीजता । 'कथासरित्सागर' में कहानियों का एक बढ़िया गुच्छा 'वेतालपंचविंशति' नामक पच्चीस (शशांकवतीलम्बक, तरंग ८, अ. ७५ - ९९) कहानियों का है । क्षेमेन्द्र की 'बृहत्कथामंजरी' में भी ये कहानियाँ हैं । सोमदेव की अपेक्षा क्षेमेन्द्र का वर्णन संक्षिप्त और अलंकार - रहित है ।
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यह प्रश्न सम्भावित है कि विक्रम और वेताल की ये कहानियाँ, यानी 'बैतालपचीसी' की कहानियाँ मूल बृहत्कथा में थीं या नहीं। इस विषय में हर्टेल और एजर्टन का मत है कि मूल 'बृहत्कथा' में 'वेतालपंचविंशति' की कहानियाँ विद्यमान न थीं । नरवाहनदत्त के उपाख्यान से स्पष्टतः उनका कोई वास्तविक सम्बन्ध भी नहीं जान पड़ता । कीथ के अनुसार, 'वेतालपंचविंशति' के उपाख्यानों पर बौद्ध प्रभाव स्पष्ट है । अस्तु;
मानव-स्वभाव के यथार्थ अंकन में सोमदेव साक्षात् व्यासदेव हैं। सोमदेव की अनेक कहानियाँ, अपनी तीव्र भावानुभूति की वेधकता के कारण, मन पर एक बार मुद्रित हो जाने के बाद अमिट हो जाती हैं । ग्यारहवीं शती में, जब कि समासबहुल शैली में लिखने की धूम थी, व्यासशैली में लिखित सोमदेव का 'कथासरित्सागर' अनन्य और अनुपम है, साथ ही शिल्प की दृष्टि से एक नई दिशा का निर्धारक भी है।
डॉ. अग्रवाल ने सोमदेव के 'कथासरित्सागर' की संरचना - शैली को 'तरंगित शैली' की आख्या दी है और कथाओं की सरसता और सघनता को दृष्टि में रखकर, सटीक लौकिक उदाहरण का परिवेश प्रस्तुत करते हुए कहा है कि सोमदेव की छोटी कहानियाँ बड़ी कहानियों के सम्पुट में, कटहल में कोयों की तरह भरी हुई हैं। निःसन्देह, साहित्य की अनेक शैलियों और अभिप्रायों के समाहृत अंकन में सोमदेव की निपुणता उनका सहज गुण थी। 'कथासरित्सागर' सचमुच कथाओं का महार्णव है । यह, 'बृहत्कथा' की पूर्व - परम्परा के स्थापत्य का ऐसा विकसित कथा - विन्यास है, जो अन्तिम है और आजतक अननुकृत भी । इसी में सोमदेव के शिल्प-सन्धान का वैशिष्ट्य और उनके कथाशिल्पी की सार्थकता निहित है । इसीलिए, 'बृहत्कथा' के उपरिविवेचित तीनों संस्कृत - नव्योद्भावनों में सोमदेव के 'कथासरित्सागर' को ही सर्वाधिक लोकप्रियता प्राप्त हुई, जो किसी भी कथाकार के लिए उसकी चूडान्त सफलता का उद्घोषक निकष है 1
'वसुदेवहिण्डी' ' का महत्त्व :
'वसुदेवहिण्डी', 'बृहत्कथा' के उक्त नैपाली नव्योद्भावन 'बृहत्कथाश्लोकसंग्रह' का परवर्त्ती ( या कनीय समकालीन) तथा कश्मीरी नव्योद्भावनों— 'बृहत्कथामंजरी' और 'कथासरित्सागर' के पूर्ववर्त्ती, जैनाम्नाय पर आधृत प्राकृत-नव्योद्भावन है । प्रांजल गद्य की भूमि पर, परिवर्तित कथानायक और नव्यता के साथ उपन्यस्त कथा की दृष्टि से यह कथाकृति 'मौलिक' या फिर 'नव्योद्भावन' शब्द को सर्वथा सार्थक करती है। इसके युगचेतना - सम्पन्न कथालेखक ने सच्चे अर्थ में 'बृहत्कथा' की अविच्छिन्न परम्परा को नई दिशा देकर उसे सातिशय ऊर्जस्वल और प्राणवाहिनी धारा से संवलित कर ततोऽधिक गतिशील बनाया है । संघदासगणी परम्परा के अन्धानुगामी नहीं, अपितु