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________________ ४०६ देवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा इस प्रकार, 'वसुदेवहिण्डी' में पूर्वभव की विचित्रता के आधार पर चतुर्विध देवों और मनुष्यों के अन्योन्याश्रय सम्बन्ध की सघनता का विस्तृत वर्णन कथाकार ने किया है। ब्राह्मणों के वेदों में भी देवों और मनुष्यों के परस्पर सम्बन्ध की अनेक कथाएँ मिलती हैं। भारतीय राजा दशरथ, दुष्यन्त, अर्जुन आदि स्वर्गलोक में जाकर जिन देवों के सहायक बने या जिनके पास अध्ययन किया (या फिर जैसे, अर्जुन ने शिव से पाशुपत अस्त्र प्राप्त किया था) और जिनसे सत्कार पाया, वे देव इसी भारत के उत्तराखण्ड के निवासी थे, ऐसा वैदिक विश्वास है। और, यह भी मान्यता है कि सूर्यमण्डल के समीपवर्ती देवलोक के प्राणियों को अष्टसिद्धि जन्म से ही प्राप्त है, अत: वे भी यथेच्छ मनुष्याकार धारण कर पृथ्वीलोक में आते हैं। इस मान्यता का विवरण श्रुति, स्मृति, पुराण आदि में बहुश: उपलब्ध है। 'वसुदेवहिण्डी' में तो देव और मनुष्य के बीच शास्त्रार्थ की चर्चा भी उपलब्ध होती है। कथा है कि एक दिन राजा क्षेमंकर मणि और रत्न से मण्डित दिव्य सभा में पुत्र, नाती और पोतों से घिरा हुआ बैठा था। उसी समय, ईशानकल्पवासी चित्रचूड नामक नास्तिकवादी देव शास्त्रार्थ के लिए पहुँचा। लेकिन, वह शास्त्रार्थ में, जिनवचनविशारद वज्रायुध से पराजित हो गया। तब, चित्रचूड ने मिथ्यात्व का वमन करके सम्यक्त्व ग्रहण किया। परम सन्तुष्ट ईशानेन्द्र ने वज्रायुध का सम्मान और अभिनन्दन किया तथा जिनभक्ति के प्रति अनुरागवश वज्रायुध के बारे में कहा कि 'यह तीर्थंकर बनेगा।' इस प्रकार, देव-देवियों की विपुल अवतारणा करके जन-संस्कृति के पक्षधर कथाकार संघदासगणी ने जिनवचन और तीर्थंकर की सर्वोत्कृष्टता का प्रतिपादन किया है। साथ ही, लोक-संस्कृति में देव-देवियों के प्रति आस्था की विविधताओं के उत्कृष्ट प्रतिमानों का सार्वभौम चित्रण करके तत्कालीन उन्नत सांस्कृतिक चेतना का विशिष्ट कलावरेण्य प्रतिरूपण किया है। विद्याधर और अप्सरा : प्रस्तुत शोधग्रन्थ में, पारम्परिक विद्याओं के विवरण-विवेचन के प्रकरण में विद्याधरों के सम्बन्ध में विशद प्रकाश डाला जा चुका है। अपने अभिधेय की अन्वर्थता के अनुसार ये विद्याधर विद्या का धारण करनेवाले विशिष्ट मानव ही थे। विद्याधर-लोक से मनुष्य-लोक का सघन सामाजिक-सांस्कृतिक सम्बन्ध निरन्तर बना रहता था। विद्याधरों और मानवों में वैवाहिक सम्बन्ध भी स्थापित होता था। स्वयं चरितनायक वसुदेव ने कई विद्याधरियों से विवाह किया था। विद्याधरियाँ ही प्राचीन लोककथा-जगत् की परियाँ हैं, यद्यपि अप्सराओं से ये भिन्न होती थीं। अप्सराओं का सम्बन्ध देवलोक से था, किन्तु विद्याधरियाँ या विद्याधर इसी भारतवर्ष के वैताढ्य पर्वत की उत्तर और दक्षिण श्रेणियों के निवासी थे। मनुष्यों और विद्याधरों के बीच केवल विद्या ही विभाजक रेखा थी। धरणिगोचर मनुष्यों को विद्या की सिद्धि नहीं रहती थी, किन्तु वे अपनी साधना से विद्या की सिद्धि प्राप्त करने में समर्थ हो जाते थे। वसुदेव को अपनी विद्याधरी पली नीलयशा से विद्या सिद्ध करने की प्रेरणा प्राप्त हुई थी, इसलिए कि वह विद्याधरों से कभी पराजित न हों। सिद्धविद्य वसुदेव को अपने प्रतिपक्षी विद्याधरों से बराबर मुठभेड़ भी होती रहती थी, किन्तु वह सदा अपराजेय ही बने रहते थे।
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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