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________________ वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा ___भारतीय सभ्यता के इतिहास के जिस युग में इस देश की विशिष्ट संस्कृति सबसे अधिक अभिव्यक्त हुई थी, उसी युग में संघदासगणिवाचक वर्तमान थे। वह कालिदास की तरह भारतीय इतिहास के स्वर्णयुग के कथाकार कवि थे। कालिदास, विक्रम के समसामयिक थे या गुप्तों के, यह इसलिए विशेष महत्त्वपूर्ण विवाद का विषय नहीं है; क्योंकि विक्रम से गुप्तों तक का समय (न कि केवल गुप्तों का, जैसा साधारणतः इतिहासकार मानते हैं) भारतीय इतिहास का स्वर्णयुग था। इस युग की सभ्यता और संस्कृति साहित्य में ही नहीं, अपितु ललित, वास्तु और स्थापत्य आदि विभिन्न कलाओं में परिपूर्णता के साथ व्यक्त हुई हैं। संघदासगणिवाचक इस युग के श्रेष्ठ कवि थे और उन्होंने समय की बाह्य वास्तविकता, अर्थात् सभ्यता का चित्रण तो किया ही है, साथ-ही-साथ उसकी अन्तरंग चेतना का भी, जिसे हम संस्कृति कह सकते हैं, मनोहारी समाहार प्रस्तुत किया है। संघदासगणिवाचक ने अपनी कालजयी कथाकृति 'वसुदेवहिण्डी' में भारत की जिस आभ्यन्तर चेतना या अध्यात्मभावना का चित्रण किया है, उसमें प्रवृत्तियों का समन्वय अभीष्ट रहा है, और किसी भी दशा में वह निषेधमूलक नहीं है। न कि केवल अनेक जातियों के सम्मिश्रण आदि के कारण, अपितु अनिषेधमूलकता के अर्थ में ही भारतीय संस्कृति समन्वयात्मक है, जो किसी भी देश की सभ्यता का अनिवार्य तथ्य होता है। संघदासगणिवाचक ने यदुवंशियों को इसी सांस्कृतिक आदर्श के प्रतीक के रूप में देखा है। धर्मशास्त्रों में बार-बार उद्घोषित पुरुषार्थचतुष्टय के आयत्तीकरण के निमित्त सदाचेष्ट यदुवंशियों की आदर्श प्रतीक कथा के माध्यम से मानव-जीवन के मूल्यों के विषय में 'वसुदेवहिण्डी' अपना विशिष्ट दृष्टिकोण उपस्थित करती है, इसलिए यह मानव-संस्कृति की अतिशय उदात्त और अद्वितीय ललित कथा है। दूसरे शब्दों में, यह भारतीय जीवन और संस्कृति का महामहिम महार्णव है।
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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