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वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की वृहत्कथा के अनुसार, नाट्य के समीपी 'नृत्त' के अर्थ में ही किया है, ऐसा अनुमान साधार और प्रसंगोपात्त है।
संघदासगणी ने नाट्य के सन्दर्भ में ही व्यायामिका कला का उल्लेख किया है। वसुदेव ने अपनी पत्नी पद्मा के साथ ललित रम्यकलाओं और साले अंशुमान् (कपिला नाम की पत्नी का भाई) के साथ व्यायामिका कला को आयत्त करते हुए सुखपूर्वक समय बिताया था। भरत ने 'नाट्यशास्त्र' में नृत्त में प्रयुक्त होनेवाली चारी को व्यायाम कहा है। पैर, जाँघ, ऊरु (घुटने और टखने के बीच का भाग) और कमर के समान करण (अंगाभिनय) की चेष्टा को 'चारी' कहते हैं (११.१)। चारियों में अंगों का परस्पर व्यायाम या विस्तारीकरण होता है, इसलिए उन्हें 'व्यायाम' कहा गया है (११.२)। इसका प्रयोग नृत्त, युद्ध और चलने की क्रिया में होता है। शस्त्र-संचालन आदि में भी चारियों का प्रयोग होता है। नाट्य में युद्धाभिनय के समय 'चारी-व्यायाम' का प्रदर्शन किया जाता है, इसलिए भरत ने इसे नाट्याभिनय में परिगणित किया है। यद्यपि, वस्तुतः यह मल्लविद्या या युद्धविद्या से सम्बन्ध रखता है। नाट्य में सफल चारियों का प्रयोग वही नर्तकी कर सकती है, जो व्यायामिका कला में निष्णात होती है।
संगीत :
'वसुदेवहिण्डी' से इस बात की सूचना मिलती है कि जिनपूजा के अवसर पर, राजोचित ढंग से संगीत का आयोजन किया जाता था, जिसमें विभिन्न वाद्यों के अलावा वीणा की प्रधानता रहती थी। पुण्ड्रालम्भ की कथा (पृ. २१२) है कि वसुदेव ने अष्टाहिक (आठ दिनों का) जिनोत्सव मनाया। उस उत्सव में सभी कलाकुशल व्यक्तियों को आमन्त्रित किया गया। नगर के गोष्ठिक जन भी पधारे । उसके बाद मित्रसहित वीणादत्त के साथ वसुदेव भी जिन-जागरणोत्सव में उपस्थित हुए। वहाँ नागरजन संगीत-गान और वाद्य-वादन करते हुए अपनी संगीत-कला का प्रदर्शन कर रहे थे। उस संगीत-सभा में कूसिक (सूती वस्त्र की कमीज) से आवृत देवकुमार के समान मनोहरशरीर राजा बैठा था। सभा में उपस्थित वसुदेव के साले अंशुमान् ने अपनी आर्यिका फूआ के प्रति अतिशय आदर-भावना के कारण वीणादत्त के गीत को अपने स्वर से ततोऽधिक विशिष्ट बना दिया। राजा के सान्निध्य में गाने का क्रम आने पर वीणादत्त ने वसुदेव से कहा : "आर्यज्येष्ठ ! राजा के लिए प्रस्तुत किये जानेवाले संगीत में आप कृपया वीणा बजायें या गान करें।" वसुदेव ने 'जिनपूजा' मानकर वीणादत्त का आग्रह स्वीकार कर लिया और श्रुतिमधुर गीत प्रस्तुत किया। इस क्रम में वसुदेव ने 'नागराग' और 'किन्नरगीतक' का प्रयोग किया। संघदासगणी के 'नागराग' की तुलना बुधस्वामी की 'नागमूर्च्छना' से की जा सकती है :
१. चारिभिः प्रस्तुतं नृत्तं चारिभिश्चेष्टितं तथा।
चारिभिः शस्त्रमोक्षश्च चार्योयुद्धे च कीर्तिताः॥ - नाट्यशास्त्र, ११ । ५ २. बृहत्कथाश्लोकसंग्रह' में नरवाहनदत्त के प्रति गोमुख ने जो भूमिका निबाही है, वसुदेवहिण्डी' में वसुदेव के प्रति अंशुमान् की भी वही भूमिका रही है। नाम और सम्बन्ध की भिन्नता के अतिरिक्त, दोनों ग्रन्थों की कथाओं में गोमुख और अंशुमान् की चारित्रिक भूमिकाएँ प्रायः अभिन्न हैं।