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________________ वसुदेवहिण्डी की पारम्परिक विद्याएँ १८१ उसी ग्रह के नाम का वार होता है। सृष्टि के आरम्भ में सबसे पहले सूर्य दिखलाई पड़ता है, इसलिए वह पहली होरा का स्वामी होता है। अतएव, प्रथम वार का नाम रविवार है। इस प्रकार, इसी क्रम से सोमवार, मंगलवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार और शनिवार ये कुल सात वार होते हैं। बृहस्पति, चन्द्र, बुध, और शुक्र ये सौम्यसंज्ञक एवं मंगल, रवि और शनि ये क्रूरसंज्ञक वार माने गये हैं। रविवार स्थिर, सोमवार चर, मंगलवार उग्र, बुधवार सम, गुरुवार लघु, शुक्रवार मृदु और शनिवार तीक्ष्णसंज्ञक है। ___ योग : ज्योतिष की गणना के अनुसार, सूर्य और चन्द्रमा के स्पष्ट स्थानों को जोड़कर तथा कलाएँ बनाकर ८०० का भाग देने पर योगों की संख्या निकल आती है। योगों की कुल संख्या सत्ताईस है : विष्कम्भ, प्रीति, आयुष्मान्, सौभाग्य, शोभन, अतिगण्ड, सुकर्मा, धृति, शूल, गण्ड, वृद्धि, ध्रुव, व्याघात, हर्षण, वज्र, सिद्धि, व्यतीपात, वरीयान्, परिघ, शिव, सिद्ध, साध्य, शुभ, शुक्ल, ब्रह्म, ऐन्द्र और वैधृति । जिस प्रकार नक्षत्रों के अलग-अलग देवता या स्वामी हैं, उसी प्रकार योगों के भी अलग-अलग स्वामी होते हैं। करण : तिथि के आधे भाग को करण कहते हैं, अर्थात् एक तिथि में दो करण होते हैं। कुल ग्यारह करण होते हैं । इनके नाम और स्वामी इस प्रकार हैं: वव (इन्द्र), बालव (ब्रह्मा), कौलव (सूर्य), तैतिल (सूर्य), गर (पृथ्वी), वणिज (लक्ष्मी), विष्टि (यम), शकुनि (कलियुग), चतुष्पाद (रुद्र), नाग (सर्प) और किंस्तुघ्न (वायु) । विष्टि का ही अपर नाम भद्रा है, जो अशुभ मानी जाती है, यात्राकाल में तो यह विशेष रूप से त्याज्य है। मुहूर्त : 'तैत्तिरीय ब्राह्मण में दिन और रात्रि, दोनों के मुहूर्त-संज्ञक पन्द्रह विभाग बताये गये हैं। दोनों पक्षों (शुक्ल और कृष्ण) के पन्द्रह-पन्द्रह मुहूर्त मिलाकर महीने में तीस दिनों की भाँति तीस मुहूर्त माने गये हैं। एक मुहूर्त में पन्द्रह सूक्ष्म मुहूर्त होते हैं। संघदासगणी ने 'वसुदेवहिण्डी' में ज्योतिषशास्त्र के उक्त समस्त तत्त्वों का नामत: यथाप्रसंग उल्लेख किया है । कतिपय प्रसंग ध्यातव्य हैं : भगवान् ऋषभस्वामी जिस समय अपनी माता मरुदेवी की कोख में अवतीर्ण हुए थे, उस समय चन्द्रमा उत्तराषाढा नक्षत्र के योग में था। समय पूरा होने पर मरुदेवी ने चैत्र कृष्ण अष्टमी के दिन उत्तराषाढा नक्षत्र में ही पुरुषश्रेष्ठ पुत्र को जन्म दिया था। (नीलयशालम्भ : पू १५९) । ज्योतिषशास्त्र के अनुसार उत्तराषाढा का नक्षत्र धनु और मकर राशि का होता है। इस राशि में चन्द्रमा के रहने पर जातक वक्ता, सुन्दर, शिल्पज्ञ, प्रसिद्ध धार्मिक और शत्रुविनाशक होता है, इसीलिए तीर्थंकर के जन्म के निमित्त इस शुभयोग की कल्पना की गई है। भगवान् जगद्गुरु ऋषभस्वामी ने निन्यानब्बे हजार 'पूर्व' तक केवली अवस्था में विहार करके चौदह भक्त (उपवास-विशेष)-पूर्वक माघ महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को अभिजित् १.अथ यदाह । चित्रः केतुर्दाता प्रदाता सविता प्रसविताबिशास्तानुमन्तेति । एष एव तत् । एष व तेऽहनो मुहूर्ताः । एष रात्रेः।- तेबा, ३ ।१०।९। २. यथोक्त समस्त ज्योतिस्तत्त्वों के विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य : (क) भारतीय ज्योतिष : डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री, भारतीय ज्ञानपीठ, वाराणसी; (ख) भारतीय ज्योतिष : शंकर बालकृष्णदीक्षित, अनु.: श्रीशिवनाथ झारखण्डी, प्रकाशन व्यूरो, सूचना-विभाग, लखनऊ ; (हिन्दी-समिति, लखनऊ)।
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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