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________________ १६२ वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की वृहत्कथा धरकर श्रीविजय (रानी सुतारा का पति) को मोहने के निमित्त वेतालविद्या का प्रयोग करके उसे व्याकुल कर दिया और रानी सुतारा को लेकर चल पड़ा । इस प्रकार, स्पष्ट है कि वेतालविद्या को विभिन्न प्रकार की कार्यसिद्धि के लिए विभिन्न रूपों में प्रयुक्त किया जाता था । किन्तु, परकीया को धर्षण द्वारा स्वानुकूल बनाना ही इस विद्या का केन्द्रीय उद्देश्य था । तिरस्करिणी (तिरष्क्रमणी) : इस इन्द्रजाल-विद्या द्वारा अपने को या किसी वस्तु को छिपा देने की क्षमता प्राप्त होती थी । विद्याधर इस विद्या को उस स्थिति में प्रयुक्त करते थे, जब उन्हें कोई समाजविरोधी या लोकविद्विष्ट कार्य करने (अथवा उसपर परदा डालने की आवश्यकता होती थी । प्रद्युम्न का जब जन्म हुआ, तब धूमकेतु पूर्वभव के वैरानुबन्धवश शिशु का अपहरण करके उसे भूतरमण अटवी की शिला पर छोड़ आया। शिशु अपने नाम से अंकित मुद्रा के रत्न से दि रहा था। कालसंवर विद्याधर उसी समय अपनी पत्नी कनकमाला के साथ उस ओर आया । शिशु को देख कनकमाला मुग्ध हो गई और उसे उठाकर वैताढ्य पर्वत की दक्षिण श्रेणी के पश्चिम दिग्भाग में बसे मेघकूट नामक नगर में स्थित अपने घर में ले आई और वहाँ उसने उत्सव मनाया। लोगों की जिज्ञासा की शान्ति के लिए यह घोषणा करा दी गई कि कनकमाला का गर्भ तिरस्करिणी 'विद्या द्वारा प्रच्छन्न था। आज ही प्रद्युम्न नाम से कुमार का जन्म हुआ है (पृ. ८४ : पीठिका) । इसी प्रकार, विद्याधरी मन्दोदरी को जब सीता नाम की पहली पुत्री पैदा हुई थी, तब उसे, लक्षणशास्त्रियों (ज्योतिषी) के कथनानुसार, कुलक्षय के भय से, मन्दोदरी के संकेत पर उसके अमात्य ने रत्न से भरी मंजूषा में बन्द कर दिया था और वे तिरस्करिणी विद्या से अपने को प्रच्छन्न ( अदृश्य) करके मिथिला के राजा जनक की उद्यानभूमि में चलते हुए हल की नोक के नीचे उसे रख आये थे । नवजात शिशु का परित्याग सामाजिक दृष्टि से बहुत ही अनुचित है, इसलिए मन्दोदरी के अमात्यों ने तिरस्करिणी विद्या का प्रयोग किया (मदनवेगालम्भ: रामायण : पृ. २४१ ) शुम्भ-निशुम्भा मिश्री धनश्रीलम्भ: पृ. १९५ ) : शुम्भा विद्या से ऊपर उड़ने और निशुम्भा से नीचे उतरने की क्षमता प्राप्त होती थी । इसीलिए इन दोनों को संयुक्त रूप में 'उत्पत - निपतनी' इससे इस बात का स्पष्ट संकेत मिलता है कि भ्रामरी विद्या, भौरे उत्पन्न करके उनसे शत्रु को आच्छादित कर संकटग्रस्त करने की कोई विद्या रही होगी। संघदासगणी ने अपनी महत्कथाकृति के पीठिका प्रकरण (पृ. ९९) में प्रज्ञप्ति-विद्या के बल से भौरे की जगह मच्छर उत्पन्न करने का उल्लेख किया है। प्रद्युम्न ने विद्याबल से शाम्ब का रूप बुढ़िया (मातंगवृद्धा) की तरह बना दिया। उसके बाद वे दोनों राजा रुक्मी के पास पहुँचे । मातंगवृद्धा की आँखों से मच्छरों की झड़ी निकल रही थी। उन मच्छरों से रुक्मी के सभासदों की आँखें ढक गई थीं और उन (मच्छरों) के दंश से वे सभी गूँगे-से हो गये थे । १. कौटिल्य ने भी अपने अर्थशास्त्र (१४. ३) में अन्तर्धान होने के आठ प्रकार के योगों का निरूपण किया है। एक अद्भुत योग इस प्रकार है : तीन रात तक उपवास किया हुआ व्यक्ति पुष्यनक्षत्र में कुत्ता, बिल्ली, उल्लू और बागुली - इन चारों जानवरों की दोनों आँखों का अलग-अलग चूर्ण बनाये । तदनन्तर, दाईं आँखों के बने चूर्ण को दाई आँख पर और बाई आँखों के बने चूर्ण को बाईं आँख पर लगाये। इससे उस व्यक्ति की छाया और काया, दोनों अदृश्य हो जाती हैं।
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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