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________________ वसुदेवहिण्डी की पौराणिक कथाएँ (ग) रूढ या मिथक कथाएँ संस्कृत के विभिन्न साहित्यशास्त्रियों ने कथा की संरचना का आदर्श अपने-अपने ढंग से प्रस्तुत किया है, जिनमें दण्डी, रुद्रट, व्यास, हेमचन्द्र और विश्वनाथ के आदर्शों का समन्वय करने पर संघदासगणी की 'वसुदेवहिण्डी', विधा की दृष्टि से 'कथा' की संज्ञा आयत्त करती है । दण्डी के अनुसार, कथा कविकल्पित होती है। इसमें वक्ता स्वयं नायक अथवा अन्य रहता है । कथा में आर्या छन्दों की उपस्थिति रहती है। इसमें कन्याहरण, संग्राम, विप्रलम्भ आदि का वर्णन होता है । १ रुद्रट का कथन है कि कथा की रचना गद्य में होती है। कथा के आरम्भ में देवों तथा गुरुजनों की छन्दोबद्ध स्तुति होती है। कथा की रचना का सामान्य उद्देश्य कन्या की प्राप्ति होता है । व्यासकृत 'अग्निपुराण' के मत से, मुख्य कथा की अवतारम्णा के लिए भूमिका - रूप में दूसरी कथा की योजना की जाती है और परिच्छेद का विभाग नहीं होता, किन्तु कहीं-कहीं पर लम्बक होते हैं। आचार्य हेमचन्द्र के आदर्शानुसार, सभी भाषाओं में गद्य अथवा पद्य में धीरप्रशान्त नायकवाली रचना कथा होती है। विश्वनाथ का कथादर्श है कि कथा में सरस वस्तु गद्य में वर्णित होती है । कहीं-कहीं आर्या छन्द और कहीं वक्त्र तथा अपवक्त्र छन्द होते हैं । प्रारम्भं में, पद्यमय नमस्कार एवं खल आदि का वृत्त - कीर्त्तन रहता है । " उक्त कथादर्शों का समन्वय 'वसुदेवहिण्डी' में स्पष्टतया समाविष्ट है । प्रागैतिहासिक पृष्ठभूमि पर कवि - कल्पित एवं प्राकृत-गद्य में रचित इस महत्कथाकृति के प्रारम्भ में आदि तीर्थंकर ऋषभनाथ तथा पंचपरमेष्ठी का पद्यमय नमस्कार है। बीच-बीच में प्राकृत की गाथाएँ (संस्कृत आर्या के स्थान में) भी हैं। इसके, मूलत: धीरप्रशान्त नायक वसुदेव ने स्वयं आत्मकथा प्रस्तुत की है। लम्बक (लम्भ)- बद्ध प्रस्तुत कथा का उद्देश्य कन्याप्राप्ति भी स्पष्ट ही है, जिसके लिए कन्याहरण, संग्राम, विप्रलम्भ आदि के प्रसंग भी सहज ही और अनिवार्यतः आ गये हैं । 'कथा' में कन्याहरण, विप्रलम्भ तथा अभ्युदय जैसे विषयों के समावेश का समर्थन भामह ने भी किया है। कथा के आदर्श में यह भी बताया गया है कि कथा नायक या अन्य व्यक्ति द्वारा भी कही जा सकती है। 'वसुदेवहिण्डी' में वसुदेव ने अपनी हिण्डन - कथा स्वयं कही है और उसके पूर्व के अधिकारों - कथोत्पत्ति (धम्मिल्लहिण्डी), पीठिका, मुख आदि की कथाएँ स्वयं कवि ने १. 'काव्यादर्श', १.२३ २. रुद्रट : 'काव्यालंकार' (पण्डित नमिसाधु की टिप्पणी - सहित), १६. २० ३. मुख्यार्थस्यावताराय भवेद्यत्र कथान्तरम् I परिच्छेदो न यत्र स्याद् भवेद्वा लम्बकः क्वचित् ॥ - अग्निपुराण, ३३६. १५-१६ ११३ ४. धीरशान्तनायका गद्येन पद्येन वा सर्वभाषा कथा ।... यावत् सर्वभाषा काचित् संस्कृतेन काचित् प्राकृतेन काचिन्मागध्या काचिच्छूरसेन्या काचित् पैशाच्या काचिदपभ्रंशेन बध्यते सा कथा । — काव्यानुशासन (सन् १९३४६), पृ. ४० ६ ५. कथायां सरसं वस्तु गद्यैरेव विनिर्मितम् । क्वचिदत्र भवेदार्या क्वचिद्वपवक्त्रके । आदौ पद्यैर्नमस्कारः खलादेर्वृत्तकीर्त्तनम् ॥ - साहित्यदर्पण, ६.३३२-३३३ ६. कन्याहरणसङ्ग्रामविप्रलम्भोदयान्विता । -काव्यालंकार
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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