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________________ ११० वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा दिगम्बर - सम्प्रदाय में विमलसूरि के साथ ही गुणभद्र (नवम शतक से पूर्व) की रामकथा ( उत्तरपुराण : महापुराण का उत्तरार्द्ध) भी प्रचलित है, फिर भी विमलसूरि की परम्परा अधिक आदृत है । कहना न होगा कि जैनों में ईसवी प्रथम शती से आधुनिककाल तक रामकथा की अविच्छिन्न धारा प्रवहमाण रही है।' आधुनिक काल में आचार्यश्री तुलसी ने 'सीता की अग्निपरीक्षा' लिखकर रामकथा की प्रासंगिकता को अद्यतनता प्रदान की; किन्तु साम्प्रदायिक दिग्भ्रम. के कारण वह पठनीय कृति अपेक्षित लोकप्रियता से वंचित ही रह गई ! विमलसूरि की रामकथा 'पउमचरिय' को यदि द्वितीय- चतुर्थ शती की कृति माना जाय, तब तो यह 'वसुदेवहिण्डी' की समकालीन सिद्ध होगी और यदि इसे ईसवी प्रथम शती का माना जाय, तो कथावस्तु की तुलनात्मकता के आधार पर उन दोनों के परस्पर पूर्वापर प्रभाव को विवेचना का विषय बनाया जा सकता है । यद्यपि, 'वसुदेवहिण्डी' की रामकथा (रामायण) अत्यन्त संक्षिप्त है और ऐसा प्रतीत होता है कि जिस प्रकार महाभारत में, कृष्ण की अतिशय विस्तृत कथा के बीच रामकथा को क्षेपक के रूप में प्रासंगिकता - मात्र के लिए जोड़ दिया गया है, उसी प्रकार कथाचतुर संघदासगणी ने विद्याधरवंशीय मेघनाद और बली राजाओं के वर्णन के क्रम में, बड़ी कुशलता से, भारतीय वाङ्मय में आर्यसंस्कृति की प्रथम कथा के रूप में व्यापक प्रतिष्ठा प्राप्त रामकथा को, समास- शैली में सही, प्रासंगिकता के लिए जोड़ दिया है। ‘पउमचरिय’ में स्वयं उसके कर्ता के कथनानुसार सात अधिकार' हैं : स्थिति, वंशोत्पत्ति, प्रस्थान, रण, लवकुश (लवणांकुश)-उत्पत्ति, निर्वाण और अनेक भव । ये सातों अधिकार ११८ उद्देशों या समुद्देशों में विभक्त हैं। इस प्रकार, जैनसाहित्य में महापुरुषों के चरित्र - लेखन में नवीन काव्यशैली के उपन्यासक विमलसूरि ने जहाँ विशाल रामकथा लिखी है, वहाँ संघदासगणी ने लगभग दो सौ पंक्तियों में ही रामकथा को समाहत कर दिया है। यद्यपि, 'वसुदेवहिण्डी' की रामकथा पर विमलसूरि का प्रभाव परिलक्षित नहीं होता । संघदासगणी ने इसे सर्वथा स्वतन्त्र रूप से उपन्यस्त किया है, इसलिए इसकी अपनी मौलिकता है । 'वसुदेवहिण्डी' की पूरी मूलकथा मगध (राजगृह) के राजा श्रेणिक (बिम्बिसार) की पृच्छा के उत्तर में स्वयं भगवान् महावीर द्वारा कही गई है, जबकि 'पउमचरिय' की रामकथा, विपुलाचल के मनोरम शिखर पर भगवान् महावीर के सान्निध्य में, उनके प्रधान शिष्य इन्द्रभूति गौतम गणधर द्वारा राजा श्रेणिक के लिए कही गई है। 'पउमचरिय' के अनुसार, राक्षसराज रत्नश्रवा तथा उसकी पत्नी केकसी के चार सन्तानें हैं : रावण, कुम्भकर्ण, चन्द्रनखा और विभीषण । किन्तु, 'वसुदेवहिण्डी' के अनुसार, राजा विंशतिग्रीव की चार पत्नियों में तीसरी कैकेयी से रामण (रावण) कुम्भकर्ण और विभीषण – ये तीन पुत्र तथा १. जैन रामकथा के उद्भव और विकास-विस्तार के सांगोपांग विवेचनात्मक अध्ययन के लिए रेवरेण्ड डॉ. फादर कामिल बुल्के- लिखित एकमात्र आधिकारिक एवं पार्यन्तिक कृति 'रामकथा (उत्पत्ति और विकास) ' द्रष्टव्य; पृ. ६०-७१ । २. ठिइवंससमुप्पत्ती पत्थाणरणं लवकुसुप्पत्ती । निव्वाणमणेयभवा सत्त पुराणेत्य अहिगारा ॥ (१.३२) ३. वीरस्स पवरठाणं विउलगिरीमत्थए मणभिरामे । तह इंदभूइकहियं सेणियरण्णस्स नीसेसं ॥ - पउमचरिय : १. ३४
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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