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________________ (x) 'वसुदेवहिण्डी' से तत्कालीन भौगोलिक, राजनीतिक, आर्थिक और प्रशासनिक परिस्थितियों का भी विशद वर्णन प्राप्त होता है । इस महनीय कथाग्रन्थ में अनेक नगरों, जनपदों, देशों, पर्वतों और नदियों नामों का उल्लेख मिलता है, जिससे प्राचीन पथ-पद्धति और महाजनपदों के सातिशय समृद्ध एवं विविध-विचित्र रूपों का दिग्दर्शन होता है । प्रसंगानुसार, इस ग्रन्थ में, जैनदर्शन और आचार की विवेचना के क्रम में जैनेतर दर्शनों तथा विभिन्न धार्मिक-साम्प्रदायिक मतवादों का गम्भीर और रोचक विश्लेषण किया गया है । इससे तत्कालीन धार्मिक स्थिति को हृदयंगम करने का महत्त्वपूर्ण और प्रामाणिक आधार सुलभ हुआ है। 'वसुदेवहिण्डी' की प्राकृत-भाषा भाषिक अध्ययन की दृष्टि से अपना विशिष्ट महत्त्व रखती है । यह बहुधा आर्ष प्राकृत या श्वेताम्बर - आगमों की अर्द्धमागधी के बहुत समीप है। 'वसुदेवहिण्डी' की भाषा परवर्त्ती प्राकृत के वैयाकरणों का आदर्श रही होगी, इसलिए इस ग्रन्थ की भाषा की रूप-निष्पत्ति के विषय में प्रचलित प्राकृत - व्याकरणों से बहुत ही कम जानकारी मिलती है। इसके अतिरिक्त, श्वेताम्बर - आगमों के काल-निर्धारण तथा उनकी भाषा के परीक्षण के सन्दर्भ में भी 'वसुदेवहिण्डी' की भाषा का प्रासंगिक मूल्य है । आगमिक भाषा से सातिशय निकटता रहने पर भी इस कथाकृति में कतिपय ऐसे भाषिक रूप मिलते हैं, जो आगमों, चूर्णियों और नियुक्तियों में अनुपलब्ध हैं, किन्तु वे रूप पालि- भाषा प्राप्त हैं। इस प्रकार, 'वसुदेवहिण्डी' की भाषा की जहाँ एक ओर आगमों की भाषा से सन्निकटता है, वहाँ दूसरी ओर पालि- भाषा से भी इसकी संगति है । अतएव, 'वसुदेवहिण्डी' की भाषा से अर्द्धमागधी और पालि-भाषा के पारस्परिक सम्बन्ध को समझने में सहायता मिलती है। इस कथाग्रन्थ में कुछ ऐसे भी प्रयोग उपलब्ध होते हैं, जो वैयाकरणों के अनुसार, अनुपलब्ध पैशाची भाषा के विशिष्ट लक्षणों से युक्त हैं। गुणाढ्य ने 'बृहत्कथा' की रचना पैशाची भाषा में की थी। पैशाची-विषयक लक्षण - वैशिष्ट्य के आधार पर यह कहा जा सकता है कि 'बृहत्कथा' पर आधृत इस महत्कथा की प्राकृत-भाषा में पैशाची भी प्रवृत्ति सुरक्षित है। 'वसुदेवहिण्डी' में अप्रचलित और देशी शब्दों का तो विशाल भाण्डार है। इन शब्दों की ऊहापोहपूर्वक की गई व्युत्पत्ति और तज्जनित अर्थ से न केवल प्राकृत भाषा की, अपितु संस्कृत-प्राकृतपरम्परा की सभी भाषाओं के कोश की पर्याप्त समृद्धि की सम्भावना संकेतित होती है । प्रस्तुत शोध-ग्रन्थ में 'वसुदेवहिण्डी' की उपर्युक्त विशेषताओं को निम्नविवृत पाँच अध्ययनों में पल्लवित किया गया है : अध्ययन : १ में, 'वसुदेवहिण्डी' के स्रोत और स्वरूप पर विचार करने में क्रम में इस महत्कथा को गुणाढ्य की 'बृहत्कथा' के ही विभिन्न नव्योद्भावनों में अन्यतम सिद्ध किया गया है । पुनः 'वसुदेवहिण्डी' के कथा-संक्षेप को उपन्यस्त करने के बाद इस कथाकृति की ग्रथन-पद्धति पर विशदता प्रकाश डाला गया है। 1 अध्ययन : २ में, 'वसुदेवहिण्डी' की पौराणिक कथाओं का विवेचन उपस्थापित किया गया है। इस सन्दर्भ में इस महत्कथा में प्राप्य कृष्णकथा, रामकथा, रूढ (मिथक कथाओं और प्रकीर्ण कथाओं की शास्त्रीय और सैद्धान्तिक समीक्षा प्रस्तुत की गई है और निष्कर्ष निकाला गया है कि श्रमण-परम्परा में ब्राह्मण-परम्परा की पुराणकथाओं का पुनः संस्कार करके उन्हें नवीन मूल्य और जीवन-बोध के सातिशय रमणीय लौकिकातिलौकिक परिवेश में उपन्यस्त किया गया है ।
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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