SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९४ वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा प्रणाम किया । कृष्ण ने आनन्दाश्रुपूर्ण आँखों से प्रद्युम्न को अँकवार में भर लिया और उसका माथा सूँघते हुए उसे आशीर्वाद दिया। उसके बाद कृष्ण ने प्रद्युम्न को बड़े उत्सव साथ नगर में प्रवेश कराया । कुलकरों और यादवराजाओं द्वारा मुग्ध भाव से देखे गये प्रद्युम्न ने रुक्मिणी के भवन में प्रवेश किया। प्रद्युम्न को युवराज का पद दिया गया। इस प्रकार, विजयी प्रद्युम्न ने दुर्योधन की पुत्री को भानु के लिए दे दिया । सत्यभामा ने भी प्रद्युम्न का सम्मान किया । तदनन्तर, द्वारवती की जनता ने प्रद्युम्न के अलौकिक गुणों की भूरि-भूरि प्रशंसा की । कृष्ण ने प्रसन्नतापूर्वक विद्याधर और मनुष्ययोनि के राजाओं की अनुकूल गुण-यौवनवाली कन्याओं के साथ प्रद्युम्न का विवाह कराया। अब प्रद्युम्न दौगुन्दुक देव (उत्तम जाति के देवविशेष) की तरह विविध भोगों का आस्वाद लेता हुआ निरुद्विग्न विहार करने लगा । आचार्य संघदासगणी ने 'वसुदेवहिण्डी' के पीठिका-भाग में ही 'कृष्णकथा' के प्रसंग में सत्यभामा और जाम्बवती के बीच कृष्ण द्वारा विस्तार की गई एक अतिशय अद्भुत लीला का चित्रण किया है, जो अन्यत्र दुर्लभ है। एक दिन जब कृष्ण सत्यभामा के घर आये, तब उसने उनसे निवेदन किया कि वह उसे भी प्रद्युम्न के समान तेजस्वी पुत्र प्रदान करें। क्योंकि, जो स्त्री अपने पति की जितनी अधिक प्रिय होती है, उसका पुत्र उतना ही अधिक तेजस्वी होता है। कृष्ण ने सत्यभामा को यह कहते हुए आश्वस्त किया कि चूँकि तुम मेरी सभी रानियों में ज्येष्ठा हो, इसलिए अतिशय प्रेमपात्री हो । सत्यभामा ने अवसर का लाभ उठाते हुए कहा : “यदि यह बात है, तो प्रद्युम्न के समान पुत्र मुझे भी दीजिए।” सत्यभामा की इच्छापूर्ति के लिए कृष्ण ने हरिर्नंगमेषी (इन्द्र के पदाति- सैन्य का अधिपति सन्तानदाता देवता) की आराधना की । देवता जब प्रसन्न हुए, तब कृष्ण ने उनसे सत्यभामा प्रद्युम्न के समान पुत्र की प्राप्ति का वर माँगा । देव ने कहा: “जिस देवी के साथ आपका पहले समागम होगा, उसे ही प्रद्युम्न के समान पुत्र होगा।" फिर एक हार देते हुए देव ने कहा : " यह प्रथम समागता देवी को दे दीजिएगा।” इसके बाद देवता चले गये । प्रज्ञप्तिविद्या के द्वारा प्रद्युम्न को नैगमेषी से कृष्ण के वर प्राप्त करने की सूचना मिली, तो उसने सोचा, “सत्यभामा मेरे प्रति ईर्ष्याभाव रखती है। अगर उसके मेरे समान पुत्र होगा, तो फिर मुझसे और भी स्नेह नहीं रखेगी।” वह अपनी दूसरी विमाता जाम्बवती के घर चला गया और उसने उसे अपने समान ही एक तेजस्वी पुत्र प्राप्त करने का रहस्य बताया। उसके बाद उसने प्रज्ञप्तिविद्या के बल से जाम्बवती को सत्यभामा की आकृति में बदल दिया । सत्यभामा जबतक प्रसाधन और देवार्चन में लगी रही, तबतक जाम्बवती अपने पति कृष्ण के समीप चली गई और उनसे समागम सुख प्राप्त करके हार से सुशोभित हुई और शीघ्र ही वहाँ से वापस चली आई। सत्यभामा भी कुछ देर के बाद कृष्ण के पास पहुँची और केवल संगम-सुख प्राप्त कर अपने घर लौट आई। अन्त में, कृष्ण को प्रद्युम्न के छल का पता चल गया । जाम्बवती के गर्भ से यथासमय रूपवान् शुभलक्षण-सम्पन्न तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसका नाम शाम्ब रखा गया । शाम्ब जब युवा हुआ, तब उसकी सहायता से प्रद्युम्न ने अपने पिता कृष्ण के प्रतिपक्षी साले भोजकटवासी रुक्मी की पुत्री वैदर्भी से विवाह किया। फलतः, रुक्मी को पुनः
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy