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________________ द्विसन्धान-महाकाव्य का सन्धानात्मक शिल्प-विधान प्राप्त कर राम द्वारा विभीषण को लंकाधिपति बनाना । राम की अयोध्या में वापसी। वापसी पर चक्ररत्न की पूजा । राज्याभिषेक के अनन्तर एकच्छत्र राज्यभार वहन करना । न्याय द्वारा दशों दिशाओं की स्वामित्व-प्राप्ति । पाण्डवकथा जरासन्ध के युद्ध-कौशल से यादव-सेना में संत्रास । श्रीकृष्ण द्वारा जरासन्ध के कौशल का प्रतिकार । नकुल के पराक्रम से जरासन्ध की विजयाभिलाषा धूमिल । घनघोर-युद्ध में जरासन्ध वध । भूमि के स्वतन्त्र हो जाने से मुक्ति की श्वास । विजय-प्राप्ति पर युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम आदि को विशाल राज्य की प्राप्ति । तदनन्तर कृष्ण का द्वारका वापस आना । वापसी पर चक्ररत्न की पूजा एवं एकच्छत्र राज्य का सुचारु वहन। न्यायादि द्वारा दशों दिशाओं में कीर्ति-पताका फहराना। द्विसन्धान का सन्धानात्मक शिल्प-विधान रामायण तथा महाभारत पर विहंगम दृष्टिपात करने से ही यह स्पष्ट हो जाता है कि दोनों आदिकाव्यों की कथा-वस्तु तथा निर्माण शैली में उल्लेखनीय अन्तर है। प्रथमत: महाभारत का रामायण से कथा-वस्तु की दृष्टि से किसी भी प्रकार का साम्य दृष्टिगत नहीं होता। द्वितीय, महाभारत का कलेवर एक लाख श्लोक प्रमाण है, जबकि रामायण का केवल चौबीस हजार श्लोक प्रमाण ही है । तृतीय, महाभारत में कतिपय पात्रों की मृत्यु अथवा वध के लिये प्रतिज्ञा का आश्रय लिया गया है, किन्तु रामायण में इस प्रकार की प्रतिज्ञा नहीं की गयी। चतुर्थ, राघव-पक्ष को पाण्डव-पक्ष के तथा रावण-पक्ष को कौरव-पक्ष के समकक्ष रखने पर कथा की गतिशीलता दुःसाध्य प्रतीत होती है । पंचम, रामायण तथा महाभारत के पात्रों के नामों तथा नगर आदि भौगोलिक वर्णनों में भी भिन्नता दृष्टिगोचर होती है। इस प्रकार के वैभिन्न्य के उपस्थित रहने पर यह शंका होती है कि क्या कवि दोनों कथाओं का वर्णन कर पायेगा? क्या वह दोनों कथाओं में सामञ्जस्य स्थापित कर पायेगा? रामायण तथा महाभारत में विलक्षणता होने पर भी, उपर्युक्त कथावस्तु के अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है कि धनञ्जय ने अपने विलक्षण पाण्डित्य एवं सूक्ष्म बुद्धि कौशल से विभिन्न समस्याओं का समाधान ढूंढूंढ निकाला है । रावघपक्ष तथा पाण्डवपक्ष में गुणादि की समानता प्राप्त कर उनको कथा रूप में निबद्ध करने के
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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