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________________ सन्धान- कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना रामकथा–प्रथमत: लवण समुद्र से आवेष्टित जम्बूद्वीप में स्थित किन्नर एवं देवों की भी प्रिय अयोध्या नगरी का वर्णन किया गया है । यथासामर्थ्य नगरी के वैभव का वर्णन करने के उपरान्त सर्गान्त में कवि स्वयं को इस नगरी का वास्तविक वर्णन करने में अयोग्य बताता है, क्योंकि भाग्य स्वयमेव इस नगरी में रामचन्द्र के लिये अन्यत्र अनुपलब्ध सामग्री एवं धन-वैभव की सृष्टि करता है । ७२ पाण्डवकथा-प्रथमत: लवण - समुद्र से आवेष्टित भरत क्षेत्र में स्थित आर्य एवं किन्नर आदि देवों के निवास योग्य हस्तिनापुर नामक नगरी का वर्णन किया गया है । यथासामर्थ्य नगरी के वैभव का वर्णन करने के अनन्तर सर्गान्त में कवि स्वयं को इस नगरी का वास्तविक वर्णन करने में अयोग्य बताता है, क्योंकि भाग्य स्वयमेव इस नगरी में अर्जुन के लिये लोकोत्तर वैभव की सृष्टि करता है । द्वितीय सर्ग दशरथपाण्डुराजवर्णनम् रामकथा - इस सर्ग में अयोध्या नगरी में राजा दशरथ के शासन का वर्णन है । दशरथ की रानी कौशल्या का वर्णन भी है पाण्डवकथा- इस सर्ग में हस्तिनापुर में पाण्डुराज के शासन का वर्णन है । पाण्डु-पत्नी कुन्ती का वर्णन भी है । तृतीय सर्ग राघवकौरवोत्पत्तिवर्णनम् रामकथा - इस सर्ग में राघवों (राम, लक्षमण आदि) की उत्पत्ति दिखायी गयी है । उत्पत्ति के अनन्तर उनकी शिक्षा-दीक्षा का वर्णन है। शिक्षा-दीक्षा के पश्चात् नीति-निपुणता के द्वारा भी राजाओं व समस्त पृथ्वी को वश में किये जाने का वर्णन है । पाण्डवकथा - इस सर्ग में पाण्डवों (युधिष्ठिर आदि) की उत्पत्ति दिखायी गयी है। उत्पत्ति के पश्चात् उनकी शिक्षा-दीक्षा का वर्णन है । एतदुपरान्त नीति-निपुणता द्वारा सभी राजाओं और समस्त पृथ्वी को वश में किये जाने का वर्णन है ।
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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