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________________ ५७ महाकवि धनञ्जय : व्यक्तित्व एवं कृतित्व भोज १०१५-१०५५ ई. के मध्य प्रख्यात रहा । अत: धनञ्जय निश्चित रूप से १००० ई. से पूर्व विद्यमान था। भोज के समकालीन प्रभाचन्द्र ने अपने प्रमेयकमलमार्तण्ड में एक द्विसन्धान-काव्य का उल्लेख किया है, किन्तु यह स्पष्ट नहीं, यह द्विसन्धान-काव्य दण्डी का था अथवा धनञ्जय का। (४) राजशेखर ने अपने प्रकीर्ण पद्यों में से एक में धनञ्जय का वर्णन किया द्विसन्धाने निपुणतां स तां चक्रे धनञ्जयः । यया जातं फलं तस्य सतां चक्रे धनं जयः ॥१ राजशेखर प्रतिहारराज महेन्द्रपाल और महीपाल का तथा कलचरि राजा युवराजदेव का सभाकवि था। अतएव वह ९०० से ९४० ई. तक प्रसिद्ध हुआ। इस प्रकार धनञ्जय ९वीं शती के अन्त में प्रख्यात हुआ होगा। (५) धनञ्जय कृत अनेकार्थनाममाला में इति अव्यय के विभिन्न अर्थ प्रकट करने वाला निम्न पद्य पाया जाता है हेतावेवं प्रकाराद्यैः व्यवच्छेदे विपर्ययेः । प्रादुर्भावे समाप्ते च इति शब्दं विदुर्बुधाः ।।२ यह सुविख्यात जैनाचार्य जिनसेन के गुरु वीरसेन की धवला टीका में उद्धृत है। धवला की रचना विक्रम सं. ८७३ (८१६ ई) में हुई। अत: धनञ्जय ८०० ई. के लगभग प्रसिद्ध हुआ होगा। (६) धनञ्जय कृत नाममाला पर्यायवाची संस्कृत शब्दों को प्रस्तुत करती है । यह पूर्ववर्ती शब्दकोषों से एक है। इसमें कई हिन्दू देवी-देवताओं के नाम संकलित हैं, यथा शिवरे, विष्णु, ब्रह्मा और कार्तिकेयर्थ, परन्तु यह गजानन का कोई उल्लेख १. सूक्तिमुक्तावली,पृ.४६ २. अनेकार्थनाममाला,४० ३. धनञ्जयनाममाला,६८-७० ४. वही,७४-७६ ५. वही,७२-७३ ६. वही,६६-६७
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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