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________________ ३७ सन्धान महाकाव्य इतिहास एवं परम्परा एक हस्तलिखित प्रति पाटण के भण्डार में विद्यमान है। हेमचन्द्र (१०८९-११७३ई.) का कुमारपालचरित इतिहास और व्याकरण से सम्बद्ध होने के कारण व्याश्रयकाव्य है । इसके प्रथम बीस सर्गों की रचना संस्कृत में हुई है, शेष आठ सर्ग प्राकृत में निबद्ध हैं। कुमारपालचरित में अणहिलवाड़ के चालुक्यनरेश कुमारपाल तथा उसके पूर्वजों का इतिहास वर्णित है। इसके साथ काव्य में लेखक के संस्कृत तथा प्राकृत के व्याकरणों के उदाहरण भी उपन्यस्त हैं । जिनप्रभसूरि का श्रेणिक व्याश्रयकाव्य श्रमणभगवान् महावीर स्वामी के अनन्य उपासक श्रेणिक नरेश्वर का भुवनचरित प्रस्तुत करता है । साथ ही कातन्त्र व्याकरण की दुर्गसिंह कृत वृत्ति के नियमों के उदाहरण भी इसमें समाहित हैं ।२ । प्राकृत के कृष्णलीलांशुक कृत सिरिचिंघकव्व की गणना शास्त्रीय महाकाव्यों में की जाती है । यह १२ सर्गों की गाथाबद्ध रचना है । इसके प्रारम्भिक आठ सर्ग कृष्णलीलांशुक द्वारा और अन्तिम चार उनके शिष्य दुर्गाप्रसाद द्वारा लिखे गये हैं। इसमें कृष्ण-लीला-वर्णन के साथ-साथ वररुचि और त्रिविक्रम के प्राकृत व्याकरणों के प्रायोगिक उदाहरण भी प्रस्तुत किये गये हैं। वस्तुत: यह भट्टिकाव्य की परम्परा का काव्य है । इसमें पाण्डित्य तो है, किन्तु रसपूर्णता नहीं है। शास्त्र-काव्यों के समान सिरिचिंघकव्व में कवि के पाण्डित्य से उसके कवित्व को अभिभूत कर लिया गया है। यही कारण है कि सामान्य पाठक के लिये यह दुर्बोध एवं नीरस हो गया है। शास्त्रीय शैली का एक रूप शास्त्रकाव्यों के अतिरिक्त सन्धान-महाकाव्यों में दृष्टिगोचर होता है। संस्कृत भाषा में एक ओर जहाँ एक वस्तु के अनेक पर्यायवाची होते हैं, वहाँ कुछ ऐसे शब्द भी हैं, जिनके अनेक अर्थ पाये जाते हैं । संस्कृत की इस विशिष्टता से ही सन्धान -महाकाव्यों का सृजन प्रारम्भ हुआ। जिन महाकाव्यों में एकाधिक कथानकों को विविध अलंकारों के बल पर ऐसा गुम्फित किया जाये कि पाठक चमत्कृत हो उठें, उन्हें सन्धान-महाकाव्य कहा जाता है । ऐसे महाकाव्यों का प्रधान लक्ष्य चमत्कृति और पाण्डित्य प्रदर्शन ही होता है। इस विलक्षण विधा का जैन मनीषियों द्वारा संस्कृत काव्य के क्षेत्र में सर्वप्रथम प्रयोग किया गया। उन्होंने सन्धान अर्थात् श्लेषमय चित्रकाव्यों की रचना और उसका १. हीरालाल कापड़िया : जैन संस्कृत साहित्य नो इतिहास, भाग २ उपखण्ड १,पृ.१९५ २. वही
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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