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________________ सन्धान - कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना सुमतिनाथचरित, देवचन्द्र सूरि का शान्तिनाथचरिय, शीलाचार्य का महापुरिसचरिय, महेश्वरसूरि का पञ्चमी कहा, वर्द्धमानाचार्य का आदिनाथचरिय, देवप्रभसूरि का पार्श्वनाथचरिय, हरिभद्रसूरि का नेमिनाथचरिय आदि प्राकृत के प्रमुख ग्रन्थ हैं, जिनमें से अधिकांश अप्रकाशित हैं । गुणचन्द्रमणि का महावीरचरिय (सं. ११३९) प्राकृत का सबसे बृहत् चरितकाव्य है, किन्तु इसे महाकाव्य के स्थान पर पुराण कहना अधिक युक्तिसंगत है । अपभ्रंश पौराणिक महाकाव्य २० अपभ्रंश भाषा में पौराणिक शैली के जिन महाकाव्यों की रचना हुई है, उनकी मुख्य विशेषता है— जैनानुमोदित पौराणिक परम्परा का पोषण करना । अपभ्रंश महाकाव्य साहित्य के निर्माण की निम्नलिखित तीन उल्लेखनीय विधाएं रही हैं (क) रामायण और महाभारत के जैन रूपान्तर । (ख) त्रिषष्टिशलाकापुरुषों के युगपत् जीवन-वृत्त । (ग) पौराणिक पुरुषों के वैयक्तिक जीवन-चरित । (क) रामायण और महाभारत के जैन रूपान्तर आठवीं शती में स्वयम्भू ने पउमचरिउ और रिट्ठणेमिचरिउ नामक दो विपुलकाय महाकाव्यों की रचना की, जिन्हें पद्मपुराण या रामायणुपुराणु और हरिवंशपुराण भी कहा गया है । ईस्वी सन् की पहली शताब्दी तक जैनों ने अपने पुराणों को पूर्ण रूप से विकसित कर लिया था । इस काल तक राम, लक्ष्मण, कृष्ण, बलदेव आदि ब्राह्मणों के पौराणिक पुरुषों को भी उन्होंने अपने शलाकापुरुषों में सम्मिलित कर लिया था । अभिप्राय यह है कि जैनों ने ब्राह्मण विचारधारा के प्रतिनिधि काव्य-ग्रन्थ महाभारत और रामायण की कथाओं में कुछ परिवर्तन कर उन्हें जैन महाभारत और जैन रामायण का रूप दे दिया । प्रथम शती में विमलसूरि रचित प्राकृत का पउमचरिउ वाल्मीकि रामायण से प्रभावित ऐसा ही महाकाव्य है । कालान्तर में अपभ्रंश में, साथ ही संस्कृत में भी राम कथा के जैन रूपान्तर काव्य और पुराण – दोनों रूपों में हुए । (ख) त्रिषष्टिशलाकापुरुषों के युगपत् जीवन-वृत्त जैन साहित्य में सभी शलाकापुरुषों के जीवनवृत्तों का एक साथ वर्णन करने वाले ग्रन्थ महापुराण कहे जाते हैं । पुष्पदन्त का दसवीं शती (९६५ ई.) में लिखा
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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