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________________ २७० सन्धान-कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना दोनों मुख्य रसों के अतिरिक्त द्विसन्धान में स्थान-स्थान पर दूसरे करुण, बीभत्स आदि रसों की भी अवस्थिति देखी जा सकती है । इस प्रकार महाकाव्य के लक्षण 'रसभावनिरन्तरम्' की स्थिति को बनाये रखने में धनञ्जय विशेष सतर्क रहे हैं। __अलंकार नियोजन की दृष्टि से द्विसन्धान को अलंकार-प्रधान महाकाव्य की संज्ञा दी जाये तो अत्युक्ति नहीं होगी । सन्धान-काव्य का सम्पूर्ण गणित ही मानों अलंकारों पर ही अवलम्बित है। श्लेष और यमक शब्दालङ्कारों के जितने रूप और भेद संभव हैं द्विसन्धान में उन्हें देखा जा सकता है । चित्रालङ्कारों के प्रयोगों से भी काव्य-चेतना को चामत्कारिक शोभा प्राप्त हुई है । द्विसन्धान के लेखक की यह सद्रढ़ मान्यता है कि शब्दालङ्कार ही नहीं अपितु अर्थालङ्कार भी व्यर्थक सन्धान-काव्य को गतिशीलता प्रदान करते हैं । अलंकारों की भाँति ही छन्द-योजना की शैली भी अत्यन्त प्रभावशाली सिद्ध हुई है । रस तथा भाव की अपेक्षा से कवि ने छन्द-योजना को सार्थकता प्रदान की है। यद्यपि परवर्ती साहित्यशास्त्रीय छन्द-योजना के नियम द्विसन्धान पर पूरी तरह से चरितार्थ नहीं किये जा सकते हैं तथापि द्विसन्धान-महाकाव्य एक विशेष रसभाव की अपेक्षा से किसी विशेष छन्द की योजना में रुचि लेते दिखायी देते हैं। सातवीं शताब्दी की काव्यशास्त्रीय मान्यताओं के आधार पर काव्य में लोक-चित्रण की प्रासंगिकता को भी रेखांकित किया गया है । द्विसन्धान-महाकाव्य में सांस्कृतिक लोक-चित्रण के प्रति भी विशेष रुचि ली गयी है । तत्कालीन साहित्य राज्याश्रय में रचित होने के कारण राज-चेतना तथा युगीन सामन्तवादी जीवन-दर्शन की ओर उसका विशेष झुकाव रहता आया है इसलिए अनेक आधुनिक साहित्य समीक्षक मध्यकालीन संस्कृत साहित्य को एक आभिजात्य वर्ग के साहित्य के रूप में मूल्यांकित करते हैं परन्तु द्विसन्धान-महाकाव्य में प्रतिबिम्बित लोक-चित्रण के विविध पक्षों का यदि अवलोकन किया जाये तो यह भलीभाँति स्पष्ट हो जाता है कि महाकाव्य का लेखक तत्कालीन राजनैतिक जीवन के अंकन को विशेष महत्व देने के बाद भी जन-सामान्य एवं समाज की विविध संस्थाओं के चित्रण के प्रति भी आँखें मूंदे हुए नहीं है । राजनैतिक पटल पर ही समाज के विविध पक्षों-उद्योग व्यवसाय, आर्थिक जन-जीवन, शिक्षा-दीक्षा, कला, ज्ञान-विज्ञान सम्बन्धी जिस सांस्कृतिक सामग्री का हम अवलोकन कर पाते हैं उसके आधार पर यह नहीं कहा जा सकता है कि द्विसन्धान-महाकाव्य केवल तत्कालीन राजप्रासादों तथा आभिजात्य वर्गों के लिये ही समर्पित काव्य है । युगीन चेतना के सन्दर्भ में यद्यपि
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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