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________________ उपसंहार इस प्रकार द्विसन्धान-महाकाव्य के विविधपक्षीय अध्ययन से यह विशद हो जाता है कि काव्य-सृजन की महाकाव्य-विधा एक विश्वजनीन लोकप्रिय विधा रही है। सामूहिक नृत्य-गीत एवं शौर्यपूर्ण गाथाओं से महाकाव्य साहित्य का विकास हुआ है । मुख्यतया महाकाव्य दो वर्गों में विभक्त किये जा सकते हैंविकसनशील शैली के महाकाव्य तथा अलंकृत शैली के महाकाव्य । विकसनशील महाकाव्य राष्ट्रीय स्तर की समाजशास्त्रीय पृष्ठभूमि के अनुरूप निर्मित होते हैं जबकि अलंकृत शैली के महाकाव्यों की रचना के पीछे साहित्यशास्त्रीय आग्रह मुख्य कारण होते हैं। भारतवर्ष में रामायण और महाभारत प्रथम धारा के विकसनशील महाकाव्य हैं । परवर्ती कवियों ने इन्हीं से प्रेरणा पाकर अलंकृत शैली में विभिन्न प्रकार के महाकाव्यों का निर्माण किया । मोटे तौर पर महाकाव्य साहित्य की यह द्वितीय धारा चार प्रकार के महाकाव्य-सृजन से विशेष समृद्ध हुई (१) पौराणिक शैली के महाकाव्य,(२) ऐतिहासिक महाकाव्य,(३) रोमांचक तथा कथात्मक महाकाव्य एवं (४) शास्त्रीय महाकाव्य । द्विसन्धान-महाकाव्य को उपर्युक्त वर्गीकरण के सन्दर्भ में शास्त्रीय महाकाव्य शैली के अन्तर्गत रखा जा सकता है। पञ्चमहाकाव्य इसी के अन्तर्गत समाविष्ट हैं परन्तु रसपरकता एवं नैसर्गिकता की अपेक्षा से साहित्य समालोचकों ने इन महाकाव्यों को 'रससिद्ध' तथा 'रूढिबद्ध' अथवा 'कृत्रिम काव्य'- दो वर्गों में वर्गीकृत करने का प्रयास भी किया है। द्विसन्धान-महाकाव्य अश्वघोष, कालिदास आदि के सौन्दरनन्द, रघुवंश, कुमारसंभव आदि के समान नैसर्गिक एवं रसपेशल महाकाव्य नहीं है अपितु अलंकारमण्डन एवं वाग्विलास पूर्ण काव्य के कृत्रिम मूल्यों की उपज है, फलत: इसे रसपूर्ण नैसर्गिक काव्य तो कहा ही नहीं जा सकता । वस्तुत: द्विसन्धान कृत्रिम काव्य की दिशाओं से अनुप्रेरित होकर भारवि के किरातार्जुनीय से विशेष प्रभावित जान पड़ता है । साथ ही यह महाकाव्य एक
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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