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________________ २५६ सन्धान-कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना विशेषताएं मानी गयी हैं, तो अत्यन्त सीधापन, तीक्ष्णता एवं अधिक लम्बा होना उत्कृष्ट बाण के लक्षण स्वीकार किये गये हैं। कला उच्च अध्ययन विषय के रूप में तथा जनजीवन के मनोरञ्जन की दृष्टि से संगीत एवं नृत्य कला का एक महत्वपूर्ण स्थान रहा था। द्विसन्धान-महाकाव्य में राज्याभिषेक के अवसर पर विभिन्न प्रकार के संगीताचार्यों, नर्तनाचार्यों, गायनाचार्यों तथा अभिनयाचार्यों आदि के द्वारा अपनी-अपनी कला-प्रदर्शन किये जाने के सुन्दर दृश्य अंकित हुए हैं। इसके अतिरिक्त वनवास काल में भी भीलों ने राघवों तथा पाण्डवों का मनोरंजन किया। लीलागृहों में नर्तकियों के नृत्य करने के मनोरम दृश्य भी चित्रित हैं। द्विसन्धान में युद्ध-प्रयाण तथा युद्धारम्भ के अवसर पर भेरी', तूर्य, पटह, शंख', तथा कनकानक आदि का प्रयोग विशेष रूप से अंकित हुआ __ उस समय वास्तुकला में चित्रकला का महत्वपूर्ण स्थान रहा था । द्विसन्धान में दूत हनुमान लंका पहुँचने पर भवन-निर्माण सम्बन्धी वर्णनों में छज्जे की सहारे की लकड़ियों पर स्त्रियों के चित्र खुदे होने का वर्णन भी करता है ।१० इसके अतिरिक्त पति-विरह में व्याकुल प्रेमिका द्वारा पति के चित्र बनाये जाने का वर्णन भी प्राप्त होता है ।११ चित्रकार चित्र बनाने के लिये विभिन्न प्रकार के रंगों तथा तूलिकाओं का प्रयोग करते थे ।१२ द्विस.,३.४० २. वही,४.२२ ३. वही,४५४ ४. वही,१.३० ५. वही,१८.६८ ६. वही,१६.६ ७. वही.१६७ ८. वही ५.४८ ९. वही,७.९ १०. वही, १३.८ ११. वही,८.४३ १२. वही,८४४
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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