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________________ २५२ सन्धान-कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना कोटिशिला माहात्म्य जैन धर्म की दृष्टि से इस शिला का बहुत महत्व है । यह वह शिला है, जिस पर से करोड़ों मुनि सिद्ध पद को प्राप्त हुए हैं । ऐसी धार्मिक मान्यता प्रसिद्ध थी कि रावण को वही मार सकता है, जो इसको उठायेगा। द्विसन्धान के अनुसार भविष्य में बलपूर्वक आने वाले कलियुग के भय से धर्म की निधिभूत इस कोटिशिला को भूमि के भीतर छिपाकर रख दिया गया था, किन्तु यतियों ने इसे भूमि के ऊपर कर दिया था। धनञ्जय ने ऐसा विश्वास प्रकट किया है कि यह सम्भवत: इन्द्र द्वारा सुमेरु पर्वत से लायी गयी पाण्डुकशिला है । पद्मपुराण द्वारा स्थापित परम्परा का अनुसरण करते हुए द्विसन्धान में लक्ष्मण ने इसे उठाकर अपनी शक्ति का परिचय दिया था। दर्शन धर्म से जुड़ा हुआ पक्ष दर्शन का भी है । द्विसन्धान व्यर्थक महाकाव्य है, अतएव इसमें दर्शन सम्बन्धी विषयों का विस्तारपूर्वक विवेचन नहीं किया गया है, " किन्तु महाकाव्यकार को जहाँ भी उचित स्थान मिला है, उसने जैन दर्शन के विभिन्न विचारों का समावेश अपनी कृति में किया है। समाविष्ट दार्शनिक विषयों का विवेचन इस प्रकार है१.द्रव्य जैन दर्शन के अनुसार द्रव्य का लक्षण सत् है तथा सत् वह है जो उत्पाद, व्यय और धौव्य-इन तीनों से युक्त हो ।६ द्विसन्धान-महाकाव्य में भी धौव्य-उत्पाद-व्यय रूप त्रिपुटी का उल्लेख कर, उसे ब्रह्मा-विष्णु-महेश त्रिपुरुष का रूपान्तर माना गया है। १. पद्मपुराण,४८.१८६ २. द्विस,१२.३१ ३. वही,१२.३२ ४. पद्मपुराण,४८.२१४ ५. द्विस.,१२.३२ ६. तत्वार्थ सूत्र,५.२९-३० ७. द्विस,१२५०
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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